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उत्तराखंड शिक्षा विभाग का अहम कदम, बस्ते के भार में खोता बचपन….इतना तय हुआ बस्तों का भार
उत्तराखंड में में राजकीय, अशासकीय और पब्लिक स्कूलों के लिए शिक्षा विभाग ने स्कूल बैग के भार को तय कर दिया है, बकायदा शिक्षा विभाग ने इसके लिए कक्षा 1 से लेकर 12 तक के स्कूली छात्रों के बैग के भार को लेकर एक गालडलाइन भी जारी करी है। शिक्षा विभाग द्वारा जारी यह गाइडलाइन केंद्र सरकार की ओर से प्रसारित स्कूल बैग पॉलिसी-2020 पर आधारित है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डा. मुकुल कुमार सती ने कहा कि अब नियमों का पालन न करने वाले विद्यालयों पर कार्रवाई की जाएगी।
उत्तराखंड शिक्षा विभाग का अहम कदम
उत्तराखंड में छात्रों के बैग के बोझ को कम करने और शिक्षा को मुसीबत नहीं बल्कि उज्वल भविष्य की सीढ़ि बनाने के लिए शिक्षा विभाग ने ठोस कदम उठाया है। दरअसल, उत्तराखंड में राजकीय, अशासकीय और पब्लिक स्कूलों के लिए शिक्षा विभाग ने स्कूल बैग के भार को तय कर दिया है, बकायदा शिक्षा विभाग ने इसके लिए कक्षा 1 से लेकर 12 तक के स्कूली छात्रों के बैग के भार को लेकर एक गालडलाइन भी जारी करी है। आपको बता दें कि शिक्षा विभाग द्वारा जारी यह गाइडलाइन केंद्र सरकार की ओर से प्रसारित स्कूल बैग पॉलिसी-2020 पर आधारित है। इस गाइडलाइन में शिक्षा विभाग ने कक्षा 1व 2 के लिए स्कूल बैग का भार 2.2 किलो से अधिक न रखने का आदेश दिया है। शिक्षा विभाग ने कहा है कि राजकीय, अशासकीय और पब्लिक स्कूलों में तय बस्ते का भार नियम लागू होगा। वहीं माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने गाइडलाइन जारी करते हुए बताया कि इस संदर्भ में 22 अगस्त,2024 को शासनादेश जारी किया था, इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने भी स्कूल बैग पॉलिसी-2020 निर्धारित करी थी लेकिन, शिक्षा विभाग के संज्ञान में उत्तराखंड के कई राजकीय, अशासकीय और सीबीएसई अैर आइसीएसई बोर्ड के तहत संचालित निजी विद्यालयों द्वारा उक्त शासनादेश का अनुपालन न करने के मामले भी सामने आ रहे हैं लिहाजा अब नियमों का पालन न करने वाले विद्यालयों पर कार्रवाई की जाएगी।बस्ते के भार में खो गया बचपन
नन्हें-नन्हें नौनिहालों पर पहाड़ के समान बोझ उन्हें कोल्हू का बैल बना रहे हैं, भारी बस्तों के नीचे दबी मासूमियत अब कहीं खोती सी नजर आती है। आमतौर पर देखा जाता है कि कक्षा 1 व 2 के छोटे बच्चें बस्ते के बोझ तले दबे हुए रहते हैं, छोटे-छोटे स्कूली बच्चे रोजाना 5-7 किलोग्राम वाले स्कूल बैग को उठाए पैदल ऐसे जाते हैं मानों संपूर्ण अर्थव्यव्स्था के बोझ को इन नौनिहालों के कंधो पर अभी से लाद दिया गया हो। राजकीय विद्यालयों में यदि कोई छात्र किताबें लाने में असमर्थ होता है या भूल जाता है तो भी अध्यापक उन्हें बाकी छात्रों की किताबों से पढ़ने को कह देते हैं लेकिन निजी स्कूलों में तो सभी विषयों की पुस्तकें लाना अनिवार्य होती हैं। यही कारण भी है कि आजकल के कक्षा 1 व 2 में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चों के लिए शिक्षा मात्र कागजों का बोझ बनकर रह गई है और बच्चों के मन में शिक्षा के प्रति उत्सुकता कहीं खोती सी नजर आ रही है। हालांकि कुछ प्ले ग्रुप तक के निजी विद्यालय छोटे बच्चों की कुछ कापियां स्कूल में ही जमा कराते हैं और हर रोज कक्षा शुरू होने पर देते हैं। निदेशक ने सभी विद्यालयों को एक वर्ष में 10 बस्ता रहित दिवस का भी पालन करने के निदेश दिए। इस शिक्षा व्यवस्था को अतिरिक्त भारत के रूप में न देखते हुए सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाया जाए। इससे व्यावहारिक और सैद्धांतिक ज्ञान के बीच का अंतर कम होगा।इतना तय हुआ बस्तों का भार
कक्षा-1 और 2 के लिए 1.6 से 2.2 किलो कक्षा-3 से 5 के लिए 1.7 से 2.5 किलो कक्षा 6 और 7 के लिए दो से तीन किलो कक्षा- 8 के लिए 2.5 से चार किलो कक्षा 9 एवं 10 के लिए 2.5 से 4.5 किलो कक्षा 11 एवं 12 के लिए 3.5 से पांच किलो“बस्तों के वजन की जांच के लिए शिक्षा विभाग जनपद स्तर पर कमेटी का गठन करेगा। जो समय-समय पर स्कूलों का औचक निरीक्षण किया जाएगा। टीम वेट मशीन के माध्यम से बस्ते का वेट लेगी। यदि किसी विद्यालय में मानक के अनुरूप बस्ते का वजन ज्यादा पाया गया तो उस विद्यालयों को नोटिस जारी किया जाएगा स्पष्ट जवाब नहीं मिलने पर विभाग संबंधित विद्यालय की मान्यता एवं एनओसी प्रत्याहरण की कार्रवाई सुनिश्चित करेगा।”- डा.मुकुल कुमार सती, निदेशक माध्यमिक शिक्षा