दीपावली के उत्सव से जानवरों को जान खतरा
दीपावली के मौके पर पूरा देश दीपावली के उत्सव में डूबा हुआ है। जगह – जगह लोग जर्बदस्त बम पटाखे छोड़कर दीपावली का त्योहार मना रहे हैं। मगर दीपावली का ये त्योहार कुछ जीवों के लिये जिंदगी और मौत का सबब बन रहा है। जी हां धमाकों के शोर गुल वन्य जीवन पर आफत बनकर टूट रहा है। खासकर पक्षियों पर यह दीपावली बेहद भारी पड़ रही है। आलम यह है कि इन तीन दिनों में पटाखों के धमाकों से पक्षी शहरों और गांव से जैसे गायब ही हो गये हैं।
साल दर साल दीपावली के मौके पर जिस कदर लोगों में पटाखे उड़ाने का क्रेज बढ़ रहा है। उससे वन्य जीवन खतरे में पड़ता जा रहा है। खासकर दीपावली के दौरान पटाखों के धमाके पक्षियों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। उत्तराखंड के अधिकांश पर्वतीय शहरों की बात की जाए तो सभी शहर जंगलों के आस पास ही बसे हैं। लिहाजा यहां पक्षियों की कई दुलर्भ प्रजातियां मौजूद हैं। मगर पिछले तीन दिनों से ऐसे कई पक्षी हैं जो घरों के आस पास नजर तक नहीं आ रहे हैं। कारण है पटाखों का जबर्दस्त शोर। जिससे प्रभावित होकर ये पक्षी नजाने कहां गायब हो गये हैं। खासकर गौरया, चीड़ फिजेंट, ब्राउन उड आउल, स्टेपी इगल, किंग फिशर समेत कई अन्य पक्षी पटाखों के शोर से गायब हैं। वन्यजीव प्रेमी इस बात से बेहद हैरान हैं कि आखिर ये पक्षी गये कहां।
आपको बता दें कि पटाखों का शोर जानवरों के लिये बेहद खतरनाक होता है। खासकर पटाखों का ये शोर पक्षियों के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। पक्षियों में किसी भी आवाज को सुनने की सबसे अधिक क्षमता होती है ऐसे में पक्षियों के आवासी इलाकों में कहीं भी पटाखे की हल्की धमक भी होती है तो इसकी आवाज सीधे पक्षियों के कानों तक पहुंच जाती है। ऐसे में अगर लगातार बड़े धमाके होते हैं तो पक्षियों को जबर्दस्त आघात पहुंचता है। उन्हें दिशा भ्रम हो जाता है। काफी देर तक पक्षि भटकता रहता है। आघात लगने से भी पक्षी की मौत हो सकती है। इतना ही नहीं पटाखों की धमक से घोंसले में मौजूद अंडों के भीतर अगर भ्रूण पल रहा है। तो उसकी भी मौत हो सकती है। इस लिहाज से पटाखों को शोर पक्षियों के लिये जानलेवा साबित होता है।
नैनीताल और उसके आस पास करीब 700 से 790 तक पक्षीयो की प्रजातियों पाई जाती है। जिनमें रेड हैडेड वल्चर, ग्रेड स्पॉटेड ईगल, ईस्टर्न इम्प्रिल ईगल, ग्रे क्राउन प्रिरीनिया, ब्लेक क्रिस्टेड टिट, ग्रीन क्राउन वाबलर व विस्टलर वार्बलर, ब्लेक लोर्ड टिट, एशियन पैराडाइज फ्लाई कैचर, अल्ट्रामैरीन फ्लाई कैचर, वर्डिटर फ्लाई कैचर, लॉन्ग टेल्ड मिनीविट, ह्वाइट कैप्ड रेडस्टार्ट, ओरिएंटल ह्वाइट आई, ओरिएंटल टर्टल डोव, ब्लेक थ्रोटेड टिट, ग्रेट बारबेट, कॉमन रोजफिंच, रस्टी चीक्ड सिमिटार बाबलर, ग्रे विंग्ड ब्लेक बर्ड, ब्लू विंग्ड मिन्ला, लेसर येलोनेप, ग्रे हूडेड वार्बलर, येलो वागटेल, हिमालयन वुडपीकर व रसेट स्पैरो आदि पक्षी जाते हैं जो आमतौर पर कही अन्य जगह देखने को बहुत कम मिलते है। दीपावली में पटाखों बढ़ता इस्तेमाल पक्षियों के लिये जानलेवा बन गया है। लिहाजा अब वन्य जीव प्रेमी इस बात की वकालत कर रहे हैं कि दीपावली में आतिशबाजी अगर बैन ना भी की जाए तो पटाखों की तीव्रता को जरूर कम किया जाना चाहिए।बहरहाल दीपावली में पटाखे तोड़ने की परंपरा पुरानी रही है मगर इस बात का भी हमें विशेष ध्यान रखना होगा कि हमारा जीवन पर्यावरण से सीधे तौर पर जुड़ा है। वन्य जीवन को जब तक सुरक्षा नहीं मिलेगी मनुष्य के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।