
बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष में बढ़ रही मरने वालों की तादाद
इंसानों की बढ़ती आबादी और जंगलों पर अधिकार लगातार मानव वन्य जीव संघर्ष को बढ़ावा दे रहा है. पहाड़ हो या तराई वाले हिस्से कोई भी क्षेत्र अब सुरक्षित नहीं रह गए. चौंकाने वाली बात ये है कि हर साल मानव वन्य जीव संघर्ष में लगभग 36 लोगों की मौत और लगभग 182 लोग घायल होते हैं. वहीं मृतकों की इस संख्या में 26 बच्चे होते हैं शामिल. देवभूमि उत्तराखंड़ का लगभग 71 प्रतिशत भू – भाग वनों से आच्छादित है. जिस कारण यहाँ पर वन्य जीव भारी संख्या में पाये जाते हैं. राज्य बनने के बाद से इस राज्य में वन्य जीवों की संख्या खासकर बाघ और गुलदार की संख्या में भारी इजाफा हुआ है. इसके साथ ही प्रदेश में मानव वन्य जीव संघर्ष के मामले भी बढ़े हैं. आंकड़ों के अनुसार सन् 2000 से अब तक जंगली जानवरों के हमलों में लगभग 615 लोगों की मौत हो चुकी है. इसमे सबसे चिंताजनक बात यह है कि मरने वालों में 467 बच्चे भी शामिल हैं. जबकि 3102 लोग अब तक वन्य जीवों के हमलों में घायल हो चुके हैं. वहीं प्रदेश में बढ़ते मानव वन्य जीव संघर्षों के बारे में वन्य जीव विशेषज्ञ विपुल का कहना है कि विगत कुछ समय से जंगलों में जंगली वन्य जीवों के लिए भोजन की मात्रा में भारी कमी आयी है. साथ ही जंगलों में अतिक्रमण से वन्य जीव कोरीडोर बंद हो गए हैं. मानव के जंगल में बढ़ते हस्तक्षेप के चलते भोजन की तलाश में जंगली जानवर आबादी की ओर आ रहे हैं. जिससे आबादी क्षेत्रों में बाघ, गुलदार के साथ ही हाथियों के घुसने और टकराव की घटनाएं बढ़ रही हैं. वहीँ वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मानव का जंगली जानवरों के निवास स्थल में हस्तक्षेप काफी बढ़ गया है. इंसानी हस्तक्षेप से जंगली जानवरों के स्वभाव में भी परिवर्तन आ रहा है. पहले की अपेक्षा जंगली जानवरों का स्वभाव काफी आक्रामक हो गया है. साथ ही जंगलों में मानवीय हस्तक्षेप से खाद्य श्रृंखला भी डिस्टर्ब हो रही है. जिसकी वजह से जंगली जानवरों के भोजन की तलाश में आबादी वाले क्षेत्र में घुसने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं.