
सदाबहार शर्मिला टैगोर ने मनाया अपना 73वां जन्मदिन
भारतीय सिनेमा की सबसे सफल अभिनेत्रियों में शुमार शर्मिला टैगोर आज अपना 73वां जन्मदिन मना रही हैं. भले ही आज की पीढ़ी उन्हें सैफ अली खान की मां और करीना कपूर की सास के रूप में जाने, लेकिन जितनी शानदार उनकी एक्टिंग होती थी, उतना ही हाई उनका ग्लैमर कोशंट था।
अपने दौर की इस बेहतरीन अदाकारा ने जब भोपाल के नवाब और क्रिकेटर मंसूर अली खान पटौदी से शादी का फैसला लिया तब कई लोगों को ये यकीन था कि यह रिश्ता चल नहीं पाएगा। यहां तक कि उस दौर में ऐसी खबरें आती थीं कि लोगों के बीच ये शर्त लगी है कि शर्मिला और टाइगर पटौदी की शादी जल्दी टूट जाएगी।
जब बंगाली लड़की शर्मिला और मंसूर अली खान की शादी हुई थी। तब कई लोगों ने कहा कि उनका रिश्ता कुछ सालों में ही खत्म हो जाएगा। लेकिन सबको गलत साबित करते हुए पटौदी और शर्मिला का रिश्ता 47 साल तक बना रहा।शर्मिला और नवाब पटौदी का रिश्ता कितना गहरा था। इसका अंदाजा शर्मिला की इसी बात से लगाया जा सकता है कि ‘टाइगर और मेरी जिन्दगी एक-दूसरे से ही शुरू और एक-दूसरे पर ही खत्म होती थी’। एक मैगजीन को दिए इंटरव्यू में अपने रिश्ते को लेकर शर्मिला टैगोर ने कई बाते बताई थीं। उन्होंने कहा कि, ‘ 21 दिसंबर 2011 को हमारी 43वीं शादी की सालगिरह होती, लेकिन उससे पहले ही वो मेरा साथ छोड़ कर चले गए। टाइगर के जाने के बाद मैं बिल्कुल अकेली हो गई। लेकिन उनको मैं आज भी हर जगह महसूस कर सकती हूं जिससे मेरा अकेलापन मुझे परेशान नहीं करता।
पटौदी से अपनी पहली मुलाकात के बारे में बताते हुए शर्मिला कहती हैं कि, मेरी टाइगर से पहली मुलाकात मेरे 21 वें जन्मदिन के कुछ महीने पहली ही हुई थी। हम दोनों हमारे कॉमन फ्रेंड की एक पार्टी में दिल्ली में मिले थे. वो मुझसे 3 साल 11 महीने बड़े थे लेकिन उनका मजाकिया अंदाज और विनम्रता ने मुझे उनकी तरफ आकर्षित किया। मुझे ऐसा लगा कि मैं अपनी पूरी जिंदगी उन्हें सौंप सकती हूं। हमने चार साल तक डेट की. वो मुझे पहले ही प्रपोज कर चुके थे लेकिन मैंने हां कहने में काफी टाइम लगाया। उनकी मजाक करने की आदत और विनम्रता ताउम्र उनके साथ बनी रही. यहां तक की जिन्दगी के आखिरी पलों में भी उन्होंने कभी अपने दुखों के बारे में नहीं कहा कि वो तो बस शांत हो कर सारी तकलीफें सहन कर रहे थे और हमारे सामने आखिर तक हंसते-हंसाते रहे।टाइगर जहां एक शांत, मैच्योर और जिम्मेदार किस्म के इंसान थे। वहीं मैं बहुत जल्द आवेश में आ जाती थी और शायद यही वजह थी कि हम दोनों एक-दूसरे को कॉम्पिल्मेंट करते थे. वो अपने पिता की तरह जिंदादिल थे तो मां की तरह निजी इंसान भी। वो बहुत सोच-समझकर चीजें कहा करते थे और कभी भी झगड़े में विश्वास नहीं करते थे जबकि मुझे बहुत गुस्सा आता था।जिन्दगी के आखिरी पलों में भी उनका कॉन्फिडेंस हमेशा बना रहा। वो हिम्मत के साथ अपनी बीमारी से लड़ रहे थे। उनकी आखिरी नींद से पहले उन्होंने मुझसे कहा था कि रिंकू ये (बीमारी) ठीक नहीं हो रही है, पर मुझे उम्मीद है कि ये ठीक हो जाए। उनके ये आखिरी शब्द हमेशा मेरे साथ रहने वाले हैं।