स्वामी विवेकानन्द के दिए भाषण को हुए 125 साल
स्वामी विवेकानंद का नाम लेते ही शरीर और मन दोनों में स्फूर्ति का संचार होता है। मन श्रद्धा से झुक जाता है। स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व इतना ऊर्जावान है कि कोई भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। आज ही के दिन साल 1893 में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित एक विश्व धर्म सम्मेलन में हिस्सा लिया था और वहां भाषण दिया था। उनके इस भाषण ने इतना प्रभाव डाला था कि पूरी दुनिया ने उनका लोहा माना था। 125 साल पहले जब स्वामी विवेकानन्द ने अपने भाषण की शुरुआत ‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ कहकर की तो पूरा सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। आपने जिस सौहार्द और स्नेहपूर्णता के साथ हम लोगों का स्वागत किया है, उससे मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया। दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से मैं आपको धन्यवाद देता हूं, मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी सम्प्रदायों व मतों के कोटि-कोटि हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं. मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने संसार को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम लोग सब धर्र्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। स्वामी विवेकानंद का यह भाषण ऐतिहासिक साबित हुआ था।
स्वामी जी शुरुआत में शिकागो में भाषण देने नहीं जाना चाहते थे, लेकिन 25 जुलाई 1893 में उनका जहाज शिकागो पहुंचा। उन्होंने शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में भाषण देने के लिए जो कष्ट उठाए वह किसी साधारण किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं थी। स्वामी जी ने खुद लिखा कि ‘जब उनका जहाज शिकागो पहुंचा था तो वहां इतनी ठंड थी कि उन्होंने लिखा है, ‘मैं हडि्डयों तक जम गया था’।उन्होंने आगे लिखा कि ‘मुंबई से रवाना होते हुए उनके दोस्तों ने जो कपड़े दिए थे वो नॉर्थवेस्ट अमेरिका की कड़ाके की ठंड के लायक नहीं थे’। शायद मेरे दोस्तों को ठंड का अनुमान नहीं था। वे विदेशी धरती पर एक दम अकेले थे। विश्व धर्म सम्मेलन के पांच हफ्ते पहले वह गलती से पहुंच गए थे। शिकागो काफी महंगा शहर था। उनके पास पर्याप्त पैसे भी नहीं थे और जितने पैसे थे वह तेजी से खत्म हो गए थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इतने संघर्ष के बाद भी उन्होंने वहां सभागार में लोगों को संबोधित किया।
स्वामी विवेकानन्द जी ने अपने अनमोल वचनों में कहा है कि ” उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए”।