
११ साल बाद भी नहीं हो पाया तैयार डोबरा चांठी पुल
प्रतापनगर की लाइफ लाइन कहे जाने वाले डोबरा चांठी पुल पर हो गए हैं करोड़ों अरबों रूपये खर्च बावजूद आज भी निर्माणाधीन है। सवा लाख की जनसँख्या वाला प्रतापनगर क्षेत्र टिहरी झील में जल भराव के बाद और जिला मुख्यालय से अलग-थलग होने के बाद आज भी जैसे काला पानी की सजा बिता रहा हो ।
2005 में जब टिहरी झील में जल भराव किया गया था और प्रतापनगर से जिला मुख्यालय को जोड़ने वाले सभी मार्ग सड़कें डूब गई और प्रतापनगर के लोगों को जिला मुख्यालय तक आने के लिए कोसों दुरी तैय करनी पड़ने लगी तब डोबरा चांठी पुल बन्ने की बात एक आश की किरण बनके उबरी लोगों को थोड़ा राहत की सांस आई की शायद अब जल्द ही उनके लिए सजा बनी ये दुरी खत्म हो जायेगी और मुख्यालय से उनकी कनेक्टिविटी फिर से जुड़ जायेगी | लेकिन ११-12 साल का समय बीत गया पर पुल का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया देखते देखते सरकारें बदल गई कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी पर नहीं बदली तो प्रतापनगर के लोगों की समस्या जो जस की तस बनी हुई है लोगों का आरोप है की जो जन प्रतिनिधि क्षेत्र से चुने जाते हैं वही क्षेत्र को लुटने का काम करते हैं और डोबरा पुल इन राजनितिक लोगों ने कमाई का अड्डा बना लिया है और ये पुल इन लोगों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी है। जिससे बार बार ये जब चाहे कोई टेक्निकल फाल्ट दिखाया। कोई कमी दिखा कर दोबारा काम करवाए और उसका पैंसा दोबारा सैंक्सन कर रिलीस करवा सकें। इनको आम जनता की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं। 2006 में शुर हुये डोबरा चांठी झुला पुल प्रोजेक्ट में अब तक 230 करोड़ रूपये खर्च हो गए हैं 2006 में शुर हुये इस प्रोजेक्ट की लागत 80 करोड़ रूपये थी इस पुल की डिजाईनिग आई टी रूडकी के द्वारा की गई थी। इसका बी के गुप्ता कम्पनी के साथ 18 महीनों का अनुबंध था। लेकिन 18 महीने पुरे होने से पहले ही यानी 2007 में ही पुल का डिजाइन फेल कर दिया गया। जबकि तब तक पुल पर 12-13 करोड़ रूपये खर्च हो चुके थे।
डिजाइन रिजेक्ट होने के बाद एक कमिश्नरि कमिशन इन्क्वारी बैठी जिसमे आई टी रूडकी के डिजाइन बनाने वाले इंजीनियरों के खिलाफ कार्यवाही की बात हुई और कुछ सरकारी अफसरों के खिलाफ भी इन्क्वारी बैठी लेकिन आज तक उस इन्क्वारी का कोई पता नहीं चला। 2007 में डिजाइन फेल होने के बावजूद 2012-13 तक इसमें करोड़ों रूपये खर्च किये गए लाखों का सामन पड़े पड़े ख़राब हो गया आखिर जब तक नया डिजाइन नहीं बनाया गया था। तब तक क्यों और किस पर इतना पैंसा खर्च किया गया। सबसे जरुरी बात 2006 के अनुबंध में पुल कांसेप्ट में डबल हाईवा वैकल चलने की अनुमति थी लेकिन नये अनुबंध में एक हाईवा वैकल ही पुल पर जा सकेगा अगर ये बदलाव किया गया है तो लोगों को बताया क्यों नहीं गया। आज तक इस प्रोजेक्ट में जो भी खामियां पाई गई या जिस भी सरकारी कर्मचारी के द्वारा इसमें कमी राखी गई उसके खिलाफ सी बी आई जांच क्यों नहीं की गई। हालांकि सरकार ने इस रुके प्रोजेक्ट में 73 करोड़ की धन राशि जारी कर दी है लेकिन इतना पैंसा खर्च होने के बाद पुल के हालात अभी भी दुरुस्त नहीं हो पाए है और जब पुल बना नहीं तो इतना पैंसा कहाँ खर्च किया गया सरकार को चाहिए की इसकी निष्पक्ष जांच करवाए और जो भी इसमें दोषी पाया जाता है उसके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाए।