
देश के तमाम राज्यों को पानी देने वाले उत्तराखंड के ही कई इलाके प्यासे रहने के कगार पर हैं। प्रदेश में पेयजल की भारी किल्लत चल रही है। बारिश कम होने की वजह से कई जिलों में अभी से पानी की कमी होनी शुरू हो गई है। 50 प्रतिशत जल स्त्रोत सूख चुके हैं। ऐसे में सरकार की कोशिश इस मौसम में पेयजल उपलब्धता मजबूत करने की है।
तीन पर्वतीय जिलों में सबसे ज्यादा पेयजल संकट
पेयजल निगम के आंकड़ों पर गौर करें तो प्रदेश के तीन पर्वतीय जिलों में सबसे ज्यादा पेयजल कि किल्लत है। पौड़ी में हर साल की तरह इस साल भी पानी की उपलब्धता सरकार के लिए चुनौती बनी है। टिहरी में भी कई इलाकों में पानी की किल्लत शुरू हो गई है। अल्मोड़ा के सल्ट, भिखियासैण सहित कई क्षेत्रों में पेयजल की भारी कमी होने लगी है। इन सभी जिलों में पेयजल आपूर्ति के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।
50 प्रतिशत जल स्त्रोत सूख गए
पर्वतीय क्षेत्र में नौले एवं धारे अनादि काल से पेयजल के स्त्रोत रहे हैं। दुर्भाग्यवश हाल के दशकों में 50 प्रतिशत जलस्त्रोत या तो सूख गए हैं या उनका जल प्रवाह कम हो गया है।
जनसंख्या वाले क्षेत्रों में तो गर्मियों में जल एकत्र करने के लिए लंबी कतारें एवं कुछ इलाकों में महिलाओं एवं बच्चों द्वारा 2 किलोमीटर से भी अधिक दूर से जल लाना सामान्य बात है। पहाड़ी कस्बों में तो गार्मियों में कई घर 25-20 रूपये मजदूरी में 20-25 लीटर पेयजल दूर क्षेत्रों से मंगाया जाता है।
आज डीएम और प्रधानों से बात करेंगे पीएम मोदी
आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विश्र्व जल दिवस पर जल शक्ति अभियान कैच द रेन की शुरूआत करेंगे। इसके तहत वह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सभी जिलों के जिला जिलाधिकारियों और ग्राम प्रधानों, सरपंचों को संबोधित करेंगे। आगामी मानसून के मौसम में सभी जल निकायों का मैपिंग किया जाएगा। इसका उद्देश्य वर्षा जल संरक्षण और भूजल रिचार्ज के लिए बड़े पैमाने पर काम करना है ताकि पानी की कमी को दूर किया जा सके।
पुष्पा रावत—
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