
किसान संगठन को 10वे दौर की वार्ता के बाद जो सकारात्मक संकेत मिले थे,
11वें दौर की वार्ता के बाद वह पूरी तरह खत्म हो चुके हैं।
क्योंकि किसान संगठन किसी भी कीमत पर बिल रद्द करने से कम पर राज़ी नहीं है।
कल की बैठक के बाद केंद्रिय कृषी मंत्री नरेंन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार इससे बेहतर बिल नहीं दे सकती है,
11वें दौर की वार्ता में टकराव इतना बढ़ गया कि अगले दौर कि वार्ता की तारीख भी तय नहीं हुई।
फिलहाल सबकी नज़रें 26 जनवरी पर टिकी हैं, जिसमें की किसान ट्रैक्टर मार्च करने पर अड़े है।
इस पर दिल्ली पुलिस और किसान संगठन के बीच लगातार बैठक जारी हैं।
किसान विरोध प्रदर्शन को खत्म करने को तैयार नहीं
सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानून को रद्द करने तक
किसान संगठन विरोध प्रदर्शन को खत्म करने को तैयार ही नहीं हैं।
ऐसे में सवाल यह उठता है की यदि सरकार दबाव में आकर कृषि बिल वापस ले लेती है तो क्या होगा?
इसका जवाब नीति आयोग के सदस्य रमेश चन्द ने दिया। उनका कहना है की यदि नए कृषि कानूनों को वापस लिया
गया तो कोई सरकार इन्हें अगले 10-15 साल तक फिर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी।
अगर ऐसा हुआ तो यह किसानों और कृषि क्षेत्र के लिए काफी नुकसानदायक होगा।
कृषि का मसला अब काफी जटिल हो चुका है।
आंदोलनकारी किसान भी सुधारों के पक्ष में हैं,लेकिन संभवत: वे चाहते हैं
कि सरकार पहले उनहें वापस लें और फिर नए कानून लाए।
सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की चिंताओं के प्रति काफी लचीलापन दिखाया है।
-निशा मसरूर
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