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दलित छात्र के भविष्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

छात्र को दिखा सकते हैं दरवाजा

आइआइटी बांबे में दाखिला लेने में क्रेडिट कार्ड में गड़बड़ी के कारण चूके दलित समुदाय के एक छात्र का सहायक बना देश का सुप्रीम कोर्ट। शीर्ष अदालत का कहना है कि कोर्ट को कभी-कभी कानून के दायरे से ऊपर उठना चाहिए, क्या पता अगले दस साल बाद यह छात्र, हमारे देश का नेता बने। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बीवी नागरत्न की टीम नें कहा, ‘वह एक दलित लड़का है, जो बिना गलती के सीट पाने से चूक गया। उसने एंट्रेंस एग्जाम पास किया और IIT Bombay में प्रवेश लेने वाला था। कितने बच्चे ऐसा करने का सार्मथ्य रखते हैं । कोर्ट ने IIT, बांबे की संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण कि ओर से पेश वकील सोनल जैन को 22 नवंबर तक छात्र को समायोजित करने की संभावाना तलाशने और आइआइटी बांबे में सीट की स्थिति के बारे में निर्देश लेने के आदेश दिए, और उसे आश्वासन दिया कि उसके आदेश को मिसाल नहीं माना जाएगा। जस्टिस टीम का कहना है कि हाई कोर्ट कि तरह हम भी कानून के पांच अलग-अलग बिंदु उठाकर छात्र को दरवाजा दिखा सकते हैं,यह एक मानवता मामला है। उन्होंने कहा कि वह अगले सोमवार (22नवंबर) को आदेश पारित कर सकती है। याचिकाकर्ता प्रिंस जयबीर सिंह ने प्रवेश परीक्षा में आरक्षित वर्ग में 864 रैंक प्राप्त किए हैं। सिंह की ओर से पेश वकील अमोल चितले का कहना है, अगर उन्हें IIT, बांबे में प्रवेश नहीं मिलता है, तो वह किसी अन्य आइआइटी में भी प्रवेश लेने को तैयार है। यह भी पढ़ें-पीएम का बड़ा ऐलान, कृषि कानूनों को वापस लेने का किया फैसला हाई कोर्ट ने की थी याचिका खारिज सिंह के वकील ने दावा किया कि याचक को सिविल इंजीनियरिंग सीट आवंटित की गई थी, लेकिन 27 अक्टूबर को उनके क्रेडिट कार्ड के काम न करने के कारण सीट शुल्क नहीं दे सके। वकील प्रज्ञा बघेल के माध्यम से दायर याचिका में, प्रिंस ने कहा कि अगले दिन उसने अपनी बहन से पैसे लेकर सीट बुक करने का प्रयास किया, किंतु असर्म्थ रहे। उनके प्रबंधन को कई ई-मेल भेजने एवं अधिकारियों को फोन करने पर भी कोई प्रतिक्रया नहीं मिली, तब उन्होंने बांबे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया किंतु वहां भी तकनी आधार पर याचिका खारिज कर दी गई।

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