उत्तराखंड में हाल ही में अवैध बस्तियों पर MDDA और नगर निगम के स्तर पर कार्यवाही करी गयी थी जिसमें नगर निगम और MDDA ने रिस्पना नदी के किनारे 27 बस्तियों में कुल 525 मकानों को चिह्नित किया था जिनमें से कुछ मकानों को ध्वस्त भी किया गया था लेकिन इन सबके बावजूद भी राज्य सरकार पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) का प्रहार जारी है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने स्पष्ट रुप से कहा है कि फ्लड जोन में किसी भी प्रकार का स्थाई निर्माण ना तो किया जा सकता है और ना ही सुरक्षा की दृष्टि से वह उपयुक्त है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के पारित निर्देशों ने रिस्पना स्थित अवैध बस्तियों को प्रदेश सरकार के गली की हड्डी बनाकर रख दिया है। प्रदेश सरकार ने अवैध बस्तियों के ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने के लिए जितने भी यत्न किए थे वे सभी बेजान साबित होते नजर आ रहे हैं। गत 16 दिसंबर को राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने रिस्पना किनारे स्थित अवैध बस्तियों को अमान्य घोषित करते हुए कहा कि देहरादून में रिस्पना नदी के बाढ़ क्षेत्र में स्थित अवैध बस्तियों के घरों को नष्ट किया जाए और साथ ही प्रदेश सरकार को सख्त निर्देशों में संकेत किया है कि प्रदेश सरकार 13 फरवरी तक अतिक्रमित बस्तियों पर की गई कार्यवाही की एक रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपे जिसमें प्रदेश सरकार को प्रदूषण नियंत्रण के उपयोगी उपायों का भी उल्लेख करना होगा।
अवैध बस्तियों पर लटकी ध्वस्तीकरण की तलवार
देहरादून स्थित रिस्पना नदी के किनारे बसने वाली 525 अवैध बस्तियों पर अब दोबारा ध्वस्तीकरण की तलवार लटक रही है। साल 2025 की शुरुआत से पहले ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देशानुसार नगर निगम और MDDA ने रिस्पना नदी के किनारे 27 बस्तियों में 525 मकानों को चिह्नित किया था, जिनमें से 89 मकान नगर निगम की भूमि पर, 12 मसूरी नगर पालिका की भूमि पर, और 415 एमडीडीए की भूमि पर स्थित थे, जबकि राज्य सरकार की जमीन पर नौ अवैध मकान बने हुए थे। नगर निगम और MDDA ने चिह्मित किए मकानों में से कुछ मकानों को पहले ही ध्वस्त कर दिया था लेकिन विरोध और कानूनी जटिलताओं के चलते कई मकानों पर कार्रवाई नहीं की जा सकी। लेकिन अब राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने साफ और स्पष्ट रुप से प्रदेश सरकार को जाहिर किया है कि अवैध बस्तियों का अस्तित्व अब और अधिक समय तक क्षेत्र में नहीं रह पाएगा, साथ ही राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने राज्य सकरार को निर्देश दिए हैं कि प्रदेश सरकार 13 फरवरी तक अतिक्रमित बस्तियों पर की गई कार्यवाही की एक रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपे जिसमें प्रदेश सरकार को प्रदूषण नियंत्रण के उपयोगी उपायों का भी उल्लेख करना होगा।