आज़ादी के अमृत महोत्सव की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर एकलव्य थियेटर देहरादून और अविकल थियेटर कंपनी, नन्ही दुनिया स्कूल के प्रांगण में स्वदेश दीपक कृत एवं अखिलेश नारायण निर्देशित नाटक कोर्ट मार्शल का मंचन किया। समाज कानून और नियमों पर टिका है। इन्हीं नियमों से जीवन को जिया जाता हैl नियमों का पालन कर जीवन, परिवार और समाज को सम्भाला जाता है। इन नियमों की पालना करते – करते कई बार ऐसे क्षण भी आते हैं जब व्यक्ति असमंजस में उलझ जाता है।
इसी उलझन से विरोध का स्वर मुखर होता है, पर व्यक्ति विरोध के बहुत से तरीकों की बजाय हत्या जैसे जघन्य अपराध का रास्ता ही अपनाता है। हिंदी के सर्वाधिक चर्चित, खेले जाने वाले नाटकों में से एक; स्वदेश दीपक कृत नाटक “कोर्ट मार्शल” हिन्दी रंगमंच का एक महत्वपूर्ण नाटक है। इस नाटक का मुख्य पात्र रामचंदर जो कि सेना में जवान है।
अपने सीनियर ऑफिसर कैप्टन मोहन वर्मा की हत्या एवं कैप्टन कपूर पर जानलेवा हमला करता है। इसके बाद रामचंदर का कोर्ट मार्शल होता है जिसमें वह अपने अपराध को स्वीकार भी कर लेता है लेकिन जब डिफेंस काउंसिल कैप्टन बिकाश राय इस हत्या के पीछे की सच्चाई को उजागर करते हैं तो यह सामने आता है कि समाज में लंबे समय से चली आ रही जातिप्रथा और उससे उपजे हुए भेदभाव का यह परिणाम है। रामचंदर को जातिसूचक शब्दों से बुलाया जाता, गालियां दी जाती, उसे प्रताड़ित किया जाता था।
जब सहनशक्ति की सीमा समाप्त हो गई तो रामचंदर ने विरोध स्वरूप अफसरों पर गोलियां चला दीं। इस नाटक के अन्य पात्र मेजर पुरी कहते हैं कि गाली का जवाब गोली से नहीं दिया जा सकता; विरोध करने के और भी रास्ते होते हैं, हत्या एकमात्र रास्ता नहीं है। इस पर कैप्टन बिकाश राय कहते हैं, जब विरोध के अन्य रास्ते भी बंद कर दिए जाएं या विरोध की आवाज़ दबा दी जाए तो ऐसे में बढ़ता हुआ लावा ज्वालामुखी लेकर ही आता है। कर्नल सूरत सिंह अपना निर्णय अगले दिन देने की घोषणा करके कैप्टन कपूर के अलावा सभी को रात पार्टी में निमंत्रित करते हैं, कैप्टन कपूर अपमानित महसूस करते हुए आत्महत्या कर लेते हैं।
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अंततः नाटक यह संदेश देता है कि समाज का विकास केवल बाहरी रूप से हो रहा है, भीतर तो वही जाति व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था है। जातिवाद ने सेना जैसी बड़ी संस्था को तक नहीं छोड़ा तो सार्वजनिक स्थानों पर तो यह आम बात है।