एंटीमाइक्रोबियल्स का अत्यधिक इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक,
सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए इन दवाओं का उपयोग कम करने का आह्वान,
समाज में बढ़ते एंटीमाइक्रोबियल्स प्रतिरोध (एएमआर) को रोकना जरूरी,
एम्स में ‘वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबियल अवेयरनेस वीक’ की शुरुआत
ऋषिकेश से संवाददाता महेश पंवार : आम लोगों को एंटीमाइक्रोबियल (या एंटीबायोटिक) के प्रति जागरूक करने और रोगाणुरोधी प्रतिरोध को कम करने के उद्देश्य से शनिवार को एम्स ऋषिकेश में ‘विश्व एएमआर जागरूकता सप्ताह’ शुरू हुआ। इस अवसर पर संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रो मीनू सिंह ने कहा कि एंटीमाइक्रोबियल्स दवाओं का अत्यधिक उपयोग स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और इसके प्रसार को रोकने के लिए सामूहिक संकल्प लेने की जरूरत है।
चिकित्सा अधीक्षक कार्यालय द्वारा गठित एएमएस समिति और संस्थान के जनरल मेडिसिन विभाग, नर्सिंग कॉलेज, माइक्रोबायोलॉजी, फार्माकोलॉजी, सामुदायिक और पारिवारिक चिकित्सा विभाग सहित एम्स के अन्य नैदानिक विभागों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सप्ताह भर के कार्यक्रम के पहले दिन, ‘एक स्वास्थ्य’ विषय पर कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला के तहत “एप्रोच टू इंटीग्रेटेड एंटी-माइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रैक्टिस’ का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह ने कहा कि मिलकर काम करके ही हम एएमआर को रोक सकते हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य बीमारियों में भी एंटीमाइक्रोबियल का प्रयोग करने से मानव शरीर में सामान्य बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं और भविष्य में इन दवाओं का प्रभाव शरीर पर कम होने लगता है। इसलिए, रोगियों, देखभाल करने वालों और अन्य लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं के माध्यम से इन दवाओं के उपयोग और उनके प्रतिकूल प्रभावों के बारे में विस्तृत जानकारी का होना महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि चिन्ता का विषय यह है कि समाज में फंगल संक्रमण बढ़ रहा है और इसका एक कारण एंटीमाइक्रोबियल्स दवाओं का अत्यधिक उपयोग है। उन्होंने कहा कि एंटीमाइक्रोबियल का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब अत्यंत आवश्यक हो। इसके लिए सभी को संकल्पित होने की जरूरत है।
डीन एकेडमिक प्रो.जया चतुर्वेदी ने मरीज का इलाज क्लिनिकली स्तर पर पहले सामान्य प्रोटोकॉल के आधार पर करने की बात कही। उन्होंने कहा कि एंटीमाइक्रोबियल का प्रयोग आवश्यक होने पर ही करना चाहिए।
जनरल मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. रविकांत ने एंटीमाइक्रोबियल्स दवाओं के प्रति प्रतिरोध को कम करने के लिए समन्वय बनाकर जागरूकता बढ़ाने की बात कही। इससे पहले ‘सोसायटी ऑफ एंटीमाइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रैक्टिस’ के सचिव और जनरल मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डाॅ. प्रसन्न कुमार पंडा ने कार्यक्रम के संबंध में विस्तृत जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल कर्मी एएमआर को कम करने में विशेष भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने बताया कि आम जनता के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए मेडिसिन विभाग ने वयस्कों का टीकाकरण शुरू कर दिया है और अभी तक 95 प्रतिशत स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों को टीका लगाया जा चुका है।
इस अवसर पर फार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. शैलेन्द्र हांडू, कॉलेज ऑफ नर्सिंग की प्राचार्य प्रो. स्मृति अरोड़ा, जिरियाट्रिक मेडिसिन की प्रमुख प्रोफेसर प्रो. मीनाक्षी धर, नेत्र रोग विभाग के प्रमुख प्रो. संजीव कुमार मित्तल, डीएमएस डॉ. भारत भूषण, डॉ. अंबर प्रसाद, डॉ. वान्या सिंह, डॉ. वेंकटेश पई, फार्माकोलॉजी विभाग की डॉ. मनीषा बिष्ट, प्रो. बलराम जी उमर, मुख्य नर्सिंग अधिकारी रीता शर्मा, आयोजन सचिव एवं नर्सिंग फेकल्टी डॉ. मनीष शर्मा, विभिन्न विभागों के एसआर, जेआर, डीएनएस, एएनएस, नर्सिंग अधिकारी आदि स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ता उपस्थित थे।