गंगा को निर्मल बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार नमामि गंगे प्रोजेक्ट के माध्यम से जहां हजारों करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है. वहीं, एनजीटी ने गंगा में किसी तरह के शव या फूल इत्यादि प्रवाहित करने पर सख्त रोक लगा रखी है. बावजूद इसके धर्मनगरी हरिद्वार में ही इन आदेशों की खुलकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. आलम यह है कि अभी भी गंगा में खुलेआम शवों को विसर्जित किया जा रहा है.
संत की मृत्यु के बाद उनके शव को गंगा में विसर्जित करने की लंबी परंपरा रही है. लेकिन प्रदूषित होती गंगा को बचाने के लिए बीते कुछ सालों से संत समाज ने ब्रह्मलीन संत को जल समाधि की जगह भू-समाधि देनी शुरू कर दी है. लेकिन इसके बावजूद अभी भी कुछ संत ऐसे हैं जिन्हें मां गंगा की पवित्रता से ज्यादा अपने ब्रह्मलीन हुए संत का मोक्ष प्यारा है।
नील धारा में ऐसे ही एक संत के ब्रह्मलीन होने पर शव को गंगा में प्रवाहित करते हुए वीडियो वायरल हो रहा है. यह वीडियो बुधवार दोपहर बाद का बताया जा रहा है. एक गंगा एक्टिविस्ट ने मौके पर पहुंच इसका विरोध भी किया. लेकिन किसी ने एक न सुनी।
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क्या कहते हैं गंगा प्रेमी: पंडित रामेश्वर दयाल शर्मा लंबे समय से गंगा में फेंकी जाने वाली गंदगी के खिलाफ आवाज उठाते आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि नीलधारा में कुछ लोगों ने मना करने के बावजूद एक शव को बहाया था. जबकि एनजीटी का साफ आदेश है कि गंगा जल को अपवित्र करने वाली धार्मिक सामग्री, शव के विसर्जन नहीं किया जाए. एनजीटी ने ऐसा करने वालों पर 50 हजार से 1 लाख रुपए तक का जुर्माना या 5 वर्ष तक की सजा या दोनों का लिखित प्रावधान किया है. लेकिन हरिद्वार का प्रशासन यहां पर इसे लागू नहीं कर पा रहा है.