सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से आर्थिक रूप से कमज़ोर के आरक्षण को लेकर संविधान संशोधन को बरक़रार रखा।इसके तहत अनारक्षित श्रेणियों के बीच के लोगों को शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की शुरुआत केंद्र सरकार ने साल 2019 से की थी साल 2019 में संसद ने संविधान के 103वें संशोधन को पारित करते हुए अनुच्छेद 15 और 16 में खंड जोड़े थे।
ये सरकार को समाज के उन आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए कोटा शुरू करने की इजाज़त देते थे जिन्होंने अन्य किसी आरक्षण का फ़ायदा नहीं उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से जो फ़ैसला दिया, वो इस संविधान संशोधन के ख़िलाफ़ चुनौती को ख़ारिज करता है।
जस्टिस एसएन अग्रवाल पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हैं और हरियाणा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं।वे कहते हैं, “मराठा समुदाय में जो आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग हैं उन्हें ईडब्लूएस आरक्षण का फ़ायदा मिल सकेगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले से मराठा समुदाय को पूरा आरक्षण मिलने की राह नहीं खुली है.”
जस्टिस अग्रवाल कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि आरक्षण का अनुपात 50 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं किया जा सकता।उन्होंने कहा, “अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण पहले से ही क़रीब 50 प्रतिशत है. जनरल कैटेगरी में जो कमज़ोर वर्ग हैं, जिनकी आमदनी सालाना आठ लाख रुपए से कम है या जिनके पास पाँच एकड़ से कम कृषि भूमि है उन्हें ईडब्लूएस आरक्षण का लाभ मिलेगा.”