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उत्तराखंड में कांग्रेस भेद पाएगी चुनावी-चक्रव्यूह, पार्टी के दिग्गजों की होगी अग्नि-परीक्षा…..जी-जान से जुटी कांग्रेस
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव में कांग्रस पार्टी की सामूहिक नेतृत्व की परीक्षा है। माह के आरंभ में ही हाईकमान ने वरिष्ठ नेताओं को एकजुटता का पाठ पढ़ाया है, तो क्या पंचायत चुनाव में कांग्रेस सामुहिक नेतृत्व के बूते पर पार पा सकेगी या फिर उसकी नाव गुटीय खींचतान के कारण भाजपा से पार पाने की कोशिशों में ही दम तोड़ देगी? वहीं इन त्रिस्तरीय पंचायतों में कांग्रेस समर्थित और खुले चुनाव होंगे जिससे दिग्गजों की क्षमता का पता चलेगा, जो 2027 में प्रदेश में कांग्रेस की राह आसान करेगा।
उत्तराखंड में कांग्रेस भेद पाएगी चुनावी-चक्रव्यूह
उत्तराखंड में चुनावी माहौल के बीच सियासी रंग धीरे-धीरे गहराता जा रहा है, वहीं पंचायत चुनाव को लेकर उत्तराखंड में भी राजनीतिक पार्टियों के खेमे में हलचल तेज हो चुकी हैं। राजनीतिक पार्टियों के खेमे में मची हलचल इस बात का प्रमाण है कि न सिर्फ राज्य में बल्कि केंद्र से ही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर तैयारियां और जनता में अपनी पकड़ की जोर-आजमाइश चल रही है। वहीं इसी बीच उत्तराखंड में कांग्रेस के खेमे में इस बात को लेकर खासी हलचल है कि क्या इस बार पंचायत चुनाव में कांग्रेस सामुहिक नेतृत्व के बूते पर पार पा सकेगी या फिर उसकी नाव गुटीय खींचतान के कारण भाजपा से पार पाने की कोशिशों में ही दम तोड़ देगी? बहरहाल, इस महीने के पहले हफ्ते में उत्तराखंड से कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेताओं को दिल्ली बुलाया गया, जहां उन्हे सामूहिक नेतृत्व और एकजुटता का पाठ पढ़ाया गया। अब इस बैठक में मिले पाठ से किसने कितना-क्या सीखा, इसका प्रदर्शन तो त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के परिणामों में ही स्पष्ट हो सकेगा। वहीं माना जा रहा है कि उत्तराखंड में मिशन 2027 को लेकर जो केंद्रीय स्तर पर पार्टी द्वारा रणनीति बनाई गई है, उसे फलिभूत करने में इन त्रिस्तरीय चुनाव का परिणाम निश्चित रुप से बड़ा ‘गेम चेंजर’ साबित होगा। इसके अतिरिक्त यह भी अंदेशा लगाया जा रहा है कि केंद्रीय स्तर पर बनाई जाने वाली रणनीति में पंचायत चुनाव के परिणाम का दखल देखने को मिल सकता है।पार्टी के दिग्गजों की होगी अग्नि-परीक्षा
उत्तराखंड में एक बार फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को सामूहिक नेतृत्व की कसौटी पर चलते हुए अग्नि-परिक्षा से गुजरना होगा। अगर बीते चुनावी परिणामों पर नजर दौड़ाई जाए तो साल 2017 के बाद से ही देश की मुख्य विपक्षी पार्टी प्रदेश में जीत का हार पहनने को तरस चुकी है लिहाजा, साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पांच सिटों पर शिकस्त पाने के बाद कांग्रेस हाईकमान भी अब सामूहिक नेतृत्व को प्राथमिकता दे रहा है। इसके ठोस संकेत तो तभी मिल चुके थे जब लोकसभा चुनाव में शिकस्त पाने के तुरंत बाद ही प्रदेश कांग्रेस ने समन्वय समिति का गठन किया था। हालांकि, इसके बाद हुए तीन विधानसभा सिटों के उपचुनावों और नगर निकाय चुनावों में पार्टी ने इसी रास्ते पर चलते हुए चुनावी रणनीति को आजमाया, लिहाजा इसमें पार्टी को फायदा तो मिलता दिखा लेकिन प्रबल नहीं। कांग्रेस ने उपचुनावों में दो परिणामों को तो अपनी झोली में समेट लिया लेकिन, नगर निकाय चुनाव में 11 में से एक भी नगर निगम उनकी पहुंच में न आ सका।जी-जान से जुटी कांग्रेस
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव में 47.72 लाख ग्रामीण मतदाता हैं, लिहाजा वोटरों को अपनी ओर लुभाने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी ऐड़ी-चोटी का जोर तो लगाएगी ही, वहीं साथ में क्षेत्रिय कार्यकर्ताओं द्वारा अपने प्रत्याशियों के लिए जीतने में कितनी क्षमता इसका भी बल ज्ञात होगा। वहीं बीते जनवरी माह में हुए नगर निकाय चुनावों में सामूहिक नेतृत्व के आधार पर भागीदारी के बावजूद भी पार्टी में टिकट वितरण को लेकर खिंचतान और गुटबाजी हुई थी, जो कि सारे प्रदेश के सामने आ गई थी। लिहाजा इस बार पंचायत चुनाव में ऐसा कोई भी कृत्य न हो, इसे लेकर हाईकमान और कार्यकर्ता पार्टी और दिग्गजों से भारी अपेक्षा कर रहे हैं।लेखक- शुभम तिवारी (HNN24X7)