उत्तराखंड उच्च न्यानालय ने बागेस्वर में हो रहे बलुआ पत्थर के अवैध खनन पर पूर्णत: रोक लगा दी है, चूंकि उच्च न्यायालय को बागेस्वर जिले में बलुआ पत्थर के अवैध खनन से घरों की दीवारों पर दरार जैसे नुकसान की रिपोर्ट को संझान में लिया है इसलिए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने बागेश्वर जिले में सभी खनन गतिविधियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।
दरअसल उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त अदालत आयुक्त मयंक जोशी और शौरिन धूलिया द्वारा इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करी गई थी जिसके बाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने छह जनवरी को यह निर्देश जारी किया। प्रस्तुत रिपोर्ट में बागेस्वर जिले के बांदा क्षेत्र के गांवों में मकानों की दीवारों पर दरारें आने की बात कही गई है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रिपोर्ट के निष्कर्ष को चिंताजनक बताते हुए कहा कि रिपोर्ट और तस्वीरें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि क्षेत्र में अवैध तरीके से खनन किया जा रहा है। साथ ही उत्तराखंड उच्च न्यानालय ने भूविज्ञान एवं खनन विभाग के निदेशक के अलावा औद्योगिक विकास विभाग के सचिव और जिलाधिकारी को राज्य की जवाबदेही को समझाने के लिए 9 जनवरी का समय दिया गया है और साथ ही दायित्वपूर्ण जवाब भी मांगा है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश गुहानाथन नरेंद्र और न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की पीठ ने न जिले में अवैध खनन से हो रही हानी की समस्या की ओर से आंखें मूंद लेने के लिए राज्य के अधिकारियों को फटकार भी लगाई है।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जताई भूस्खलन की आशंका
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने मामले की संवेदनशीलता को मध्यनजर रखते हुए कहा कि बांदा का स्थानिय प्रशासन इस अवैध खनन को जानते हुए भी आंखें मूंदे बैठा है, रिपोर्ट में साफ जाहिर होता है कि खनन कार्य जारी रहने से मकानों को नुकसान पहुंचा है, जो आगे चलकर भूस्खलन का कारण बन सकता है और जान-माल को हानी पंहुचा सकता है। साथ ही अदालत की पीठ ने कहा कि अधिकारी गैरजिम्मेदाराना कृत्य कर रहे हैं वे खनन के लिए पहाड़ की तलहटी में अवैध खनन को मंजूरी दे रहे हैं जिसके ऊपर बस्तियां मौजूद हैं।