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उत्तराखंड में मरीजों और मानसिक दिव्यांग बच्चों के लिए नई पुनर्वास नीति…यह है सरकार का दावा

उत्तराखंड सरकार ने मरीजों और मानसिक दिव्यांग बच्चों के हित के लिए नई पुनर्वास की नीति बनाने की तैयारी करी है, चूंकी हाई कोर्ट के आदेशानुसार राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण ने राज्य के संबंधित विभागों से इस नीति के लागू होने पर वित्तिय व्यय और मानव संसाधन के प्रभावों की जानकारी राज्य सरकार से मांगी है।

उत्तराखंड सरकार ने राज्य के मरीजों और मानसिक दिव्यांग बच्चों के हित के लिए नई पुनर्वास की नीति बनाने की तैयारी करी है, दरअसल हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने विभागों को लिखित पत्र सौंपते हुए राज्य में मानसिक दिव्यांग बच्चों व मरीजों के पुनर्वास के लिए समन्वित नीति लागू होने से राज्य सरकार से इस नीति पर व्यय होने वाले वित्तिय व्यय और मानव संसाधन आदि के संबंध में विभागीय अभिमत को उपलब्ध कराने की मांग करी गई है। आपको बता दें कि हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं और मानसिक दिव्यांग बच्चों के हित में पुनर्वास के अलग-अलग आदेशों को जारी करते हुए इसके संबंध में नीति बनाने के निर्देश राज्य सरकार को दिए हैं, लिहाजा वर्ष 2022 राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय बैठक को आयोजित करते हुए नशामुक्ति एवं एवं पुनर्वास केंद्रों के संबंध में प्रस्तावित नियमावली को जारी का निर्णय लिया गया था। परंतु नीति को बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा सवा दर्जन से अधिक विभागों तथा विशेषज्ञों की कमेटी बनाई के बाद भी दो महिनों का समय लेकर भी कमेटी कोई भी रिपोर्ट देने में सक्षम नहीं हो पाई, लिहाजा बीते वर्ष हाई कोर्ट ने एक बार फिर राज्य सरकार को इसपर कार्य करने के लिए निर्देशित किया।          

लागू होगी पुनर्वास की नई नीति

            उत्तराखंड में आगामी 14 मार्च 2024 को राज्य में नई पुनर्वास नीति लागू की जाएगी लिहाजा राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की ओर से राज्य सरकार से इस नीति पर होने वाले वित्तीय एवं मानव संसाधनों आदि के बारे में विभागों से अभिमत देने को कहा गया है, इसमें संयुक्त सचिव विधि, डीजीपी, महानिदेशक शिक्षा, निदेशक समाज कल्याण, निदेशक एम्स ऋषिकेश, एम्स ऋषिकेश के प्रमुख अधीक्षक मेला चिकित्सालय हरिद्वार डा. सीपी त्रिपाठी, मानसिक रोग विभाग हिमालयन मेडिकल कालेज जौलीग्रांट के एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्रियरंजन अविनाश, नैदानिक एवं पुनर्वास मनोविज्ञान अनुसांधन विभाग एनआइवीएच देहरादून डा. सुरेंद्र कुमार्र दून मेडिकल कालेज के प्राचार्य, सैलाकुई के डा. एसडी वर्मन, मनोरोग विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण डा. मयंक बडोला, डा. रवींद्र मवानी, डा. अर्चना ओझा, अतुल गुडविन, सचिव महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास शामिल हैं। आपको बताते चलें कि संबंधित विषय पर याचिकाकर्ता रोशनी सोसाइटी के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली के अनुसार हाई कोर्ट में सुनवाई 15 मार्च को होनी है।            

यह है सरकार का दावा

          अगर सरकार के द्वारा प्रोत्साहन और सहायता की बात करी जाए तो मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 की धारा 20 के प्रावधानों के अनुसार राजकीय महिला कल्याण एवं पुनर्वास केंद्र में रहने वाली सभी महिला रोगियों को तय मानकों के अनुसार वस्त्र, आवास चिकित्सा और भोजन की सुविधा उपलब्ध कराई जाती हैं। इसके साथ ही साथ नियमित रुप से सभी महिलाओं की साफ-सफाई के लिए लांड्री सेटअप तैयार किया गया है और मासिक धर्म के समय के दौरान भी महिलाओं की आवश्यक्तानुसार उन्हें नियमित रुप से सेनेटरी पैड्स भी उपलब्ध करवाए जाते हैं। वहीं 12 महीनों के हिसाब से उनकी सभी सुविधाओं का ध्यान भी रखा जाता है जैसै, सर्दियों के मौसम में महिलाओं को गर्म कपड़े, रजाई, गद्दे, ब्लोअर और सर्दी से बचाने के लिए सोलर वाटर हीटर तथा गर्मीयों के मौसम में पंखे, एसी आदि की भी समुचित व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक संस्थान में महिलाओं और बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए दिनचर्या को निर्धारित किया गया है जहां उन्हें योगा और संगीत आदि के माध्य से विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में क्रियान्वित रखा जाता है। इसके साथ ही उन्हें कौशल विकास प्रशिक्षण प्रदान कर विभिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे मोमबत्ती, जूट के थैले, पेंटिंग, दीये, पेपर बैग आदि बनवाए जाते हैं।          
लेखक- शुभम तिवारी (HNN24X7)

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