Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने आज वक्फ कानून से जुड़ा एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें वक्फ अधिनियम 1995 की कुछ धाराओं को असंवैधानिक करार दिया गया है, जबकि कानून को मूल रूप से बरकरार रखा गया है।
इस फैसले में अदालत ने स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड में अब तीन गैर-मुस्लिम सदस्य हो सकते हैं, जिससे इसकी संरचना में विविधता आएगी। यह फैसला धार्मिक संस्थानों की पारदर्शिता और समावेशिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
अनुभव की शर्त को बताया असंवैधानिक
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के सदस्य बनने के लिए न्यूनतम 5 साल के अनुभव की अनिवार्यता को खारिज कर दिया है। कोर्ट का मानना है कि यह शर्त मनमानी है और इससे कई योग्य व्यक्तियों को बोर्ड में शामिल होने से रोका जा सकता है।
किन धाराओं पर लगी रोक?
कोर्ट ने वक्फ अधिनियम की कुछ धाराओं को संविधान के मूल अधिकारों के खिलाफ माना और उन पर रोक लगा दी। हालांकि, कोर्ट द्वारा अभी यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि किन धाराओं को रद्द किया गया है।
इस पर विस्तृत जानकारी फैसले की पूरी प्रति आने के बाद ही उपलब्ध हो पाएगी।
वक्फ अधिनियम क्या है?
वक्फ अधिनियम 1995 एक केंद्रीय कानून है, जो भारत में मुस्लिम धार्मिक और जनहित से जुड़ी संपत्तियों के प्रबंधन और देखरेख के लिए लागू किया गया था। इसके तहत हर राज्य में वक्फ बोर्ड का गठन होता है, जो इन संपत्तियों का संचालन करता है।
फैसले का संभावित प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से वक्फ बोर्डों में प्रतिनिधित्व का दायरा बढ़ेगा और अधिक योग्य लोग इसमें शामिल हो सकेंगे। साथ ही, यह निर्णय संस्थागत पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को मजबूत करने वाला माना जा रहा है।
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