देश में दहेज प्रथा का पालन अभी भी कई श्रेत्रों में हो रहा है। इसी मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का दहेज जैसी सामाजिक बुराई पर रोक लगाने के पक्के आदेशों कि मांग करने लिए एक लिखित याचिका पर कहना था कि यह सही होगा कि लॉ कमिशन अपने सभी नज़रियों से इस मामले में विचार करे। साथ ही कोर्ट द्वारा लिखित याचिका को निपटाने के लिए याचकों को स्वतंत्रता दी है कि वह सभी संबंद्धित बिंदुओं पर खोज का एक नोट लॉ कमिशन को पेश कर सकते हैं।
बेंच ने दहेज को बताया समाजिक बुराई
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कि बेंच का कहन था कि निसंदेह दहेज एक समाजिक बुराई है। साथ ही शादी में दिए गए आभूषण व अन्य समान कम से कम सात वर्षों के लिए महिला के नाम पर रखने का आवेदन को मान्य ठहराते हुए लेजिस्लेचर द्वारा इस पर गहनता से सोचने कि बात कही।
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याचिका में विवाह काउंसलिंग कि मांग
कोर्ट में दायर याचिका में लीगल ऐक्सपर्ट, शिक्षाशात्री, साइकोलॉजिस्ट, सेक्सोलॉजिस्ट वाली विवाह से पूर्व विवाह पाठ्यक्रम आयोग के लिए निवेदन किया है। जिससे परिणय के बंधन में बंधने से पूर्व लोग विवाह काउंसलिंग से गुजरें तथा इसे विवाह रजिस्ट्रेशन के लिए अनिवार्य किया जाए। याचिका में कहना था कि कई समूहों में इस प्रकार कि काउंसलिंग को वास्तविक्ता में मानते हैं। सथा ही इन सभी बातों को लॉ कमिशन के समक्ष रखने के लिए कहा जिससे वह इस मामले पर ध्यान केंद्रित करके कानून की मजबूती के लिए कमियों को ठीक करने के सुझाव दें।
अंजली सजवाण