राजनीतिक दल सार्वजनिक व राजनीतिक मंच पर भले महिलाओं को बराबर का हक देने और दिलाने का दावा करते हो, लेकिन धरातल पर सच अलग ही नजर आता है। बात चुनाव में टिकट देने की करें तो शायद ही कोई दल यहां आधी आबादी का ध्यान रखता हो। देहरादून जिले की बात करें तो इस बार यहां पिछले तीन विधानसभा चुनाव की तुलना में सबसे कम महिला प्रत्याशी मैदान में हैं।
दस विधानसभा सीट वाले जिले में सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्षी कांग्रेस ने महज एक-एक सीट पर महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। जिले में चार सीट ऐसी हैं, जिन पर कोई महिला प्रत्याशी नहीं है। सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि जिले में अब तक कोई भी महिला विधानसभा चुनाव नहीं जीती है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो इस साल देहरादून जिले में कुल 117 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिनमें महिलाओं की संख्या महज दस है। इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में कुल 122 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें 14 महिलाएं थीं। एक थर्ड जेंडर (किन्नर) प्रत्याशी चुनाव मैदान में था। वहीं, 2012 के चुनाव में जिले में 164 प्रत्याशी भाग्य आजमाने उतरे थे, जिनमें 16 महिलाएं भी शामिल थीं।
अविभाजित उत्तर प्रदेश या यह कहें कि उत्तराखंड बनने से पहले दून में केवल तीन विधानसभा सीट थीं। चकराता, मसूरी व देहरादून शहर। उत्तराखंड बनने के बाद वर्ष 2002 में राज्य में हुए पहले विधानसभा चुनाव में दून में सीटों की संख्या बढ़कर नौ और फिर वर्ष 2008 में हुए परिसीमन के बाद दस हो गई। लेकिन, आज तक यहां कोई भी महिला विधानसभा की सदस्य बनने में कामयाब नहीं हुई। निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2002 से 2017 तक हुए चार चुनाव में कुल 45 महिलाओं ने चुनाव में भाग्य आजमाया।
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महिला मतदाता की संख्या लगातार बढ़ती जा रही
चुनाव मैदान में भाग्य आजमाने से भले महिलाएं पीछे हट रही हों, लेकिन जिले में महिला मतदाता की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 2002 में महिला मतदाताओं की संख्या 3.57 लाख थी, जो 2007 में 4.75 लाख पहुंच गई। इसी तरह 2012 में 4.93 लाख तो वर्ष 2017 में हुए चुनाव में इनकी संख्या बढ़कर 6.46 लाख हो गई। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 7.08 लाख हो गया है। जिले में वर्तमान में पुरुष मतदाताओं की संख्या 7.79 लाख और तीसरी श्रेणी के 79 मतदाता हैं।