नैनीताल। उत्तराखंड में वन रावत जनजाति के संरक्षण व उन्हें सरकार की जनहित योजनाओं का लाभ दिए जाने को लेकर उत्तराखण्ड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है।
याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खण्डपीठ ने राज्य व केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जबाव दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई नवम्बर माह के पहले हफ्ते में होगी।
सालसा द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण पिथौरागढ़ ने वन रावत जनजाति का सर्वे किया है। ये जनजाति पिथौरागढ़, चंपावत व उधमसिंह नगर के जंगल के गांवों में रहती है और उनकी आबादी 850 के करीब है।
इस सर्वे के अनुसार स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव में वन रावतों की औसत आयु 55 साल से कम है। उनके गांव न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाओं से दूर है। उनके गांव से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 20 से 25 किमी दूर हैं। इन गांवों में सड़क, शिक्षा, बिजली, पानी आदि मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। ये लोग वर्तमान दौर में भी अलग थलग हैं।
सरकार वन अधिनियम के आधार पर वहां आवश्यक सुविधाएं मुहैय्या न हो पाने को आधार बनाती है। जबकि केंद्र सरकार के वन अधिकार अधिनियम 2006 में वन राजियों के गांवों में आवश्यक सेवाएं उपलब्ध कराने में वन अधिनियम के नियमों में छूट प्रदान है। याचिका में वन रावतों की जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने की अपील की गई है।