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उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर संशय बरकरार, राज्य सरकार ने करा रोक हटाने का अनुरोध…..शुक्रवार को होगी सुनवाई
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर अब तक कोई राह स्पष्ट नहीं हो पाई है, पंचायत चुनाव पर लगी रोक अब भी बरकरार है। गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने राज्य के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षण रोस्टर के विरुद्ध दायर विभिन्न याचिकाओं के मामले की सुनवाई हुई। सरकार ने आरक्षण रोस्टर को शून्य घोषित करने को एकमात्र विकल्प बताया, जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसे संवैधानिक बाध्यता बताया। अगली सुनवाई शुक्रवार को होगी।
उत्तराखंड त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर संशय बरकरार
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर अब तक कोई राह स्पष्ट नहीं हो पाई है, पंचायत चुनाव पर लगी रोक अब भी बरकरार है। दरअसल, गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने राज्य के 12 जिलों में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में आरक्षण रोस्टर के विरुद्ध दायर विभिन्न याचिकाओं के मामले की सुनवाई हुई। नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान उत्तराखंड सरकार की ओर से पैरवी कर रहे महाधिवक्ता एसएल बाबुलकर व मुख्य स्थायी अधिवक्ता चंद्रशेखर रावत ने बहस करते हुए दोहराया कि पिछड़ा वर्ग समर्पित आयोग की रिपोर्ट के बाद आरक्षण रोस्टर को शून्य घोषित करना एकमात्र विकल्प था, नौ जून जारी नियमावली का 14 जून को गजट नोटिफिकेशन हो गया था। जबकि, इसके उलट याचिकाकर्ताओं की ओर से उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम व संविधान के अनुच्छेद 243 टी व अन्य का उल्लेख करते हुए कहा गया कि आरक्षण में रोस्टर अनिवार्य है और यह एक संवेधानिक बाध्यता है। दोनों पक्षों की तमाम दलीलों और बहस को सुनने के उपरांत नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की दलीलों से सहमत होते हुए याचिकाकर्ताओं से कहा है कि यदि उनके पास आरक्षण के गलत निर्धारण से संबंधित कोई विवरण हो, तो उसे कोर्ट में पेश किया जाए। तब तक नैनीताल हाईकोर्ट ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव प्रक्रिया पर अपनी रोक को बरकरार रखा है। आपको बता दें कि मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार 27 जून को जारी करी जाएगी।राज्य सरकार ने करा रोक हटाने का अनुरोध
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव प्रक्रिया को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने अपनी रोक बरकरार रखी है। वहीं दूसरी ओर गुरुवार को चली सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से से चुनाव प्रक्रिया पर लगी रोक हटाने का अनुरोध किया गया। बकौल सीएससी कोर्ट सरकार की ओर शुरू प्रक्रिया को नियम विरुद्ध नहीं माना है। लिहाजा बस इतना जान लिजिए, बात कुल मिलाकर यह है कि याचिकाकर्ता का कहना है कि एक तरफ सरकार का यह नियम कोर्ट के पूर्व में जारी आदेश के विरुद्ध है, वहीं दूसरी ओर पंचायती राज अधिनियम 2016 की धारा-126 के अनुसार कोई भी नियम तभी प्रभावी माना जायेगा जब उसका सरकारी गजट में प्रकाशन होगा। अब सवाल यह उठता है कि 14 जून को गजट नोटिफिकेशन के होने के बाद भी सचिवालय सहित अन्य संस्थाओं को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी ? अब स्थिति है कि मात्र एक आधिकारिक गलती के चलते पूरी चुनाव प्रक्रिया ही संकट में आ पड़ी है।लेखक- शुभम तिवारी (HNN24X7)