उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले ने बना डाला अपना ही इंट्रानेट
उत्तराखंड वैसे तो अपनी संस्कृति, पर्यटन और मनमोहक नजारों के लिए विश्वप्रसिद्ध है, लेकिन आज आप जानेंगे की उत्तराखंड का एक जिला ऐसा भी है जिसने अपना नाम न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश में रौशन कर दिया है। दरअसल हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले की, रूद्रप्रयाग जिला उत्तराखंड का ही नहीं बल्कि देश का पहला ऐसा जिला बन चुका है जिसने स्वयं का वायरलेस सिस्टम विकसित किया है। आपको बता दें कि रुद्रप्रयाग के डीएम डॉ. सौरभ गहरवार ने इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के काफी प्रयास किए हैं, उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरुप आज रुद्रप्रयाग जिला डिस्ट्रिक्ट डिजास्टर रिसोर्स नेटवर्क नाम का अपना इंट्रानेट स्थापित कर पाया है। वर्तमान समय में यह सेल्फ मेड वायरलेस इंट्रानेट रुद्रप्रयाग जिले के 250 किमी क्षेत्र को कवर कर रहा है, यह सब इसलिए किया गया है ताकि यदि क्षेत्र में किसी भी प्रकार की कोई भी अप्रिय और अप्रत्याशित घटना घटती है तो उसकी आवश्यक सूचना तत्काल प्रशासन के पास पंहुच सके। यही नहीं इस इंट्रानेट के माध्यम से जिले में स्थित 36 दूरस्थ स्कूलों में ऑनलाइन कक्षाएं भी करी जा सकेंगी। यह इंट्रानेट इतना पावरफुल है कि इसका उपयोग आगामी केदारनाथ यात्रा 2025 में भी लाभ उठाने के लिए किया जा सकेगा, इस इंट्रानेट की बदौलत जनसंख्या वाले क्षेत्रों के साथ-साथ केदारनाथ धाम से सोनप्रयाग और सीतापुर और केदारनाथ धाम के 10 हेलिपैडों को भी इससे जोड़ा गया है।
आपदाओं से भी नहीं होगा प्रभावित
आपको बताते चलें की यह इंट्रानेट जिला योजना और खनन न्यास निधि समेत अन्य स्रोतों के द्वारा प्रशासन ने तैयार किया है, लिहाजा इस 250 किमी क्षेत्र को कवर करने वाले इंट्रानेट के नेटवर्क सुदृढ़ करने के लिए टॉवर भी लगाए गए हैं तो वहीं इसका कंट्रोल रुम रुद्रप्रायग के आपदा नियंत्रण कक्ष में स्थापित किया गया है। यदि कभी भी जिले में आपदा या फिर अन्य अप्रत्याशित प्राकृतिक घटनाएं होती हैं तो भी इस 250 किमी क्षेत्र में फैले इस नव विकसित वायरलेस नेटवर्क को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होगी और न ही यह आपदाओं से प्रभावित होगा। इसके अलावा, वायरलेस नेटवर्क में फ्रीक्वेंसी-हॉपिंग स्प्रेड स्पेक्ट्रम से संबंधित कोई भी समस्या उत्पन्न नहीं होगी। इसके अतिरिक्त जिलाधिकारी डा. सौरभ गहरवार बताते हैं कि इंट्रानेट एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जिसका उपयोग सूचना के आदान-प्रदान और नेटवर्क सुरक्षा के लिए किया जाता है। लिहाजा केदारनाथ धाम और केदारघाटी क्षेत्र में इसका प्रयोग आगामी चारधाम यात्रा 2025 की तैयारियों, व्यवस्थाओं और यात्रियों की निगरानी के लिए भी उपयोग में लिया जाएगा और इसे स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य भी यही है। साथ ही इसके माध्यम से आपदा स्थलों की निगरानी, घोड़ों और खच्चरों के पंजीकरण की निगरानी, हाईवे, संपर्क मार्ग और पार्किंग की भी चौबीस घंटे निगरानी की जा सकेगी।