दिल्ली के उपराज्यपाल ने राजधानी में 10 और पारिवारिक अदालतों के निर्माण को दी मंजूरी
उपराज्यपाल ने 10 और परिवार न्यायालय खोलने की दी मंजूरी
सितंबर में भी बढ़ाए गए थे 32 कोर्ट
दिल्ली के 11 जिला न्यायालयों और दिल्ली हाईकोर्ट में एक लाख 11 हजार से भी अधिक मामले लंबित
नई दिल्ली: दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने राजधानी में 10 और पारिवारिक अदालतों के निर्माण को मंजूरी दे दी है, जिससे दिल्ली में ऐसी अदालतों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है. दो महीने पहले भी दिल्ली के सभी जिलों में वाणिज्यिक कोर्ट, पॉक्सो कोर्ट और एनडीपीएस के 32 नए कोर्ट बढ़ाए गए थे. इसके आलावा उपराज्यपाल ने 15 डेंटल सर्जनों की नियुक्त के नियमितीकरण को भी मंजूरी दी है, जो 1998-2004 के दौरान तदर्थ आधार पर दिल्ली सरकार के विभिन्न अस्पतालों में कार्यरत थे. दिल्ली के 11 जिला न्यायालयों और दिल्ली हाईकोर्ट में एक लाख 11 हजार से भी अधिक मामले लंबित हैं.
हाईकोर्ट में दाखिल हुई थी याचिका: दिल्ली में बड़ी संख्या में कमर्शियल कोर्ट में मामला लंबित होने को लेकर अधिवक्ता अमित साहनी ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी. दिल्ली में और कमर्शियल कोर्ट खोलने की मांग की गई थी, जिससे मामलों का जल्द निपटारा हो सके. उन्होंने याचिका में कहा था कि दिल्ली को किसी कमर्शियल मामले के निपटारे में 747 दिन लगते हैं. जबकि, दूसरे देशों में कमर्शियल मामलों के निस्तारण में 164 दिन लगते हैं. साहनी ने कोर्ट को बताया था फरवरी 2022 तक दिल्ली के कमर्शियल कोर्ट में कुल 26 हजार 959 मामले दर्ज थे
साहनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश सतीश चन्द्र शर्मा और न्यायाधीश सुब्रह्मण्यम प्रसाद की पीठ ने दिल्ली सरकार को छह महीने के अंदर 42 नए कमर्शियल कोर्ट खोलने का आदेश दिया था. इसी के तहत अब 32 कोर्ट में से सात कमर्शियल कोर्ट भी खोले गए हैं. इनमें पोक्सो के आठ, मोटर एक्सीडेंट क्लेम के दो, छह फास्ट ट्रैक कोर्ट, चार एडीजे कोर्ट, चार एएसजे कोर्ट और एक एनडीपीएस कोर्ट खोला गया है. कड़कड़डूमा कोर्ट के अधिवक्ता एनके सिंह भदौरिया ने बताया कि नए कोर्ट खुलने से मामलों के जल्द निपटारे में तेजी आएगी और लोगों को समयबद्ध तरीके से न्याय मिल सकेगा. अदालतों का बोझ भी इससे कम होगा.
खाली पदों को भरने की कोशिश: केसेज के लंबित होने का कारण न्यायालयों की कमी और न्यायालयों में जज और अन्य अधिकारियों के पदों का खाली रहना माना जाता है. पिछले एक साल के दौरान दिल्ली के न्यायालयों में खाली पदों को भरने की कोशिश लगातार जारी है. इसके चलते हाई कोर्ट और जिला न्यायालयों में कई पदों पर नियुक्तियां भी हुई हैं. दिल्ली में बड़ी संख्या में वाणिज्यिक मामले भी लंबित हैं.
उपराज्यपाल ने किशोर न्याय अधिनियम 2005 के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग (डब्ल्यूसीडी) में स्टेनोग्राफर के 9 अस्थायी पदों को स्थायी पदों में बदलने की भी मंजूरी दी है. नए खोले गए कोर्ट में सबसे अधिक आठ कोर्ट कड़कड़डूमा कोर्ट परिसर में स्थापित किए गए हैं. इसके अलावा तीस हजारी, साकेत और द्वारका कोर्ट परिसरों में भी नए कोर्ट स्थापित किए गए.