!!द केरला स्टोरी का वास्तविक सच!!
(कमल किशोर डुकलान ‘सरल’)
लड़कियों के धर्मांतरण पर बनी फिल्म द केरला स्टोरी को लेकर आज देशभर में बहस जारी है,पश्चिमी देशों के रिसर्च में कहा गया है कि चरमपंथी इस्लामवादी संगठनों का पहला उद्देश्य लोकतांत्रिक समाज की ओर से मिली आजादी का इस्तेमाल कर उन्हें भीतर से नष्ट करना है।….
लड़कियों के धर्मांतरण पर बनी फिल्म द केरला स्टोरी पर आजकल बहस जारी है। द करेला स्टोरी की पटकथा और संवादों के अध्ययन से प्रतीत होता है कि फिल्म में हिंदू, ईसाई या किसी दूसरे धर्म की लड़कियों का धर्मांतरण कर मुस्लिम बनाने और फिर आतंकी संगठनों के लिए काम करने को मजबूर करने जैसे गंभीर विषयों पर फिल्म बनाई गई है। ब्रिटेन में इस्लामी चरमपंथी संगठनों का युवा लड़कियों को तैयार करना और केरल में प्रलोभन देकर लड़कियों को धर्मांतरण करने वाली एक जैसी समानताएं हैं। ये ऐसा उग्र उपराध जो दुनिया भर के अनेक देशों में हो रहा है। दुनियाभर में इस सब्जेक्ट पर बनी फिल्मों में द करेला स्टोरी में इस्लाम को मानने वाले चरमपंथी संगठनों का उद्देश्य किशोर लड़कियों का ब्रेनवॉश कर उन्हें अपने मूल धर्म से इस्लाम में धर्म में परिवर्तन करना दिखाया गया है। इससे वे कट्टरपंथी संगठन इस्लाम धर्म में परिवर्तित हुई लड़कियों को टूल की तरह इस्तेमाल कर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। उन्हें उनके ही पुराने धर्म के खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद आईएसआईएस में भर्ती कर उनका आतंकवाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आइए जानते हैं धर्मांतरण पर पश्चिमी देशों की रिसर्च क्या कहता है? पश्चिमी देशों के रिसर्च में कहा गया है कि इस्लामवादी चरमपंथी संगठनों का पहला उद्देश्य लोकतांत्रिक समाजों की ओर से मिली आजादी का इस्तेमाल कर उन्हें भीतर से नष्ट करना है।दरअसल,लोकतांत्रिक समाज धर्म का पालन करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देते हैं। रिसर्च के मुताबिक, ये समाज शायद यह नहीं देख पाए कि लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की आड़ में किसी जगह के धर्म,संस्कृति व जनसांख्यिकी को बदलने के प्रयास भी किए जा सकते हैं। अंत में युवा लड़कियां ही इन कट्टरपंथी एजेंडों का समाज में नुकसान उठाती हैं।
लव जेहाद शब्द भारत में पहली बार केरल के ईसाई गिरिजाघरों ने गढ़ा था। चर्च के पादरियों का कहना था कि इस्लाम का विस्तार करने के लिए कट्टरपंथी लोगों की कार्यप्रणाली में ‘लव जिहाद’ भी शामिल रहा है। समय के साथ इसका स्वरूप और नाम बदलते रहे हैं,लेकिन इसका अंतिम लक्ष्य धर्मांतरण ही रहा है। कट्टरपंथी इस्लाम का प्रसार और भारतीय संस्कृति का अंत करना ही इनका अन्तिम लक्ष्य रहा है। पश्चिमी देशों ने राजनीतिक रूप से सही होने की कोशिश किए बिना इस समस्या से निपटा वहीं,भारत में इस समस्या को प्रेम विवाह और युवाओं की आजादी बताकर ढकने की कोशिश होती रही है. इसके उलट पश्चिमी समाजशास्त्री धर्म परिवर्तन के मुद्दे पर काफी स्पष्ट राय रखते हैं। आतंकी संगठनों ने दुनियाभर में युवा महिलाओं को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए ब्रेनवॉश किया।
फरवरी 2020 में मॉडर्न स्लेवरी एविडेंस यूनिट रिसर्च ब्रीफिंग ने आईएसआईएस दासता पर लिखे एक लेख के अनुसार आईएसआईएस धर्म,लिंग और उम्र के आधार पर गुलामों के बीच भेदभाव करता है। लेख में बताया गया कि अधिकांश गैर-मुस्लिम पुरुषों को मारना और गैर-मुस्लिम महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाना आईएसआईएस का उद्देश्य रहता है। लेख में कहा गया है कि 2014 और 2017 के बीच इस्लामिक स्टेट ने अपनी रणनीति के तौर पर कई देशों के नागरिकों को संस्थागत रूप से गुलाम बनाया। यही नहीं,आतंकी संगठन ने इन गुलामों का सैन्य अभियानों और अपना शासन स्थापित करने की कोशिश में इसका इस्तेमाल किया।
लेख के मुताबिक,आईएसआईएस ने धार्मिक आधार पर सार्वजनिक रूप से गुलामी और यौन हिंसा को वैध बनाने का प्रयास किया। आतंकी संगठन ने उत्तरी इराक के धार्मिक अल्पसंख्यक समूह यज़ीदी आबादी को टारगेट बनाया। आईएसआईएस ने यज़ीदी पुरुषों की बड़े पैमाने पर हत्या कर दी और महिलाओं व बच्चों को गुलाम बनाया। कैंब्रिज ने नवंबर, 2018 में ‘कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस’ में ‘क्यों पश्चिम की महिलाएं आईएसआईएस में शामिल हो रही हैं’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया। इसमें कहा गया था कि पश्चिम की महिलाओं को आकर्षित करने में आईएसआईएस सफल रहा है, जो अब तक कोई दूसरा जिहादी संगठन नहीं कर पाया था।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस का लेख बताता है कि महिलाओं को इस तरह के कुख्यात आतंकवादी समूह में शामिल होने के लिए आखिर क्या प्रोत्साहित करता है,जबकि ये संगठन अपनी हिंसा,दुर्व्यवहार और दासता के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। वेबसाइट कैंब्रिज डॉट ओआरजी पर प्रकाशित लेख में कहा गया था कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया में शामिल होने के लिए 550 से अधिक पश्चिमी महिलाएं सीरिया व इराक चली गई हैं। ये उसकी बड़ी सफलता है। इस सफलता के कारण समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि आईएसआईएस पश्चिम की महिलाओं को कैसे लुभाता है? साथ ही ये जानना भी जरूरी है कि इस्लामिक स्टेट महिलाओं को क्या भूमिका देता है?
द केरला स्टोरी अपनी तरह की या इस विषय पर बनी इकलौती फिल्म नहीं है। लव जिहाद,धर्मांतरण, आतंकी संगठनों के दूसरे धर्म की महिलाओं का इस्तेमाल को लेकर दुनियाभर में दर्जनों फिल्में व डॉक्यूमेंट्रीज बनाई गई हैं. इन सभी फिल्मों और डॉक्यूमेंट्रीज में ये जानने की कोशिश की गई है कि कैसे पश्चिमी देशों की पढ़ी लिखी महिलाएं आतंकी और चरमपंथी संगठनों के झांसे में आकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर लेती हैं।
लव जिहाद की अवधारणा को लेकर 2009 तक दबी आवाज में बात की जाती थी। अब इस अवधारणा का हर जगह उल्लेख किया जाने लगा है। इस मुद्दे पर भारत समेत दुनियाभर में चर्चा होने लगी है। भारत के केरल में ईसाई चर्च लव-जिहाद को बड़ी साजिश का हिस्सा मानते हैं। हसाम मुनीर ने ‘हाउ इस्लाम स्प्रेड थ्रूआउट द वर्ल्ड’ शीर्षक से अपने पेपर में इस विचार का विरोध किया है कि इस्लाम केवल तलवार के दम पर फैला है।वह कहते हैं कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंतर-धार्मिक विवाह उन चार तरीकों में से एक था, जिसके जरिये इस्लाम का प्रसार हुआ।
भारतीय ईसाइयों की वैश्विक परिषद ने कहा था कि केरल में लव जिहाद वैश्विक इस्लामीकरण परियोजना का हिस्सा है. केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल ने 2009 में कहा था कि 2600 से अधिक युवा ईसाई महिलाओं को 2006 से इस्लाम में परिवर्तित किया गया है। उनके सतर्कता आयोग ने ईसाइयों को ऐसी घटनाओं को लेकर सतर्क रहने को कहा था।
रुड़की, (हरिद्वार)