उत्तराखंडराष्ट्रीय खेल 2025सम्मानित
होनहार बेटे की सफलता देख छलके मां के आंसू…अनु कुमार की सफलता की संघर्ष भरी कहानी
उत्तराखंड के अनु कुमार ने राष्ट्रीय खेलों में 800 मीटर दौड़ में रजत पदक जीतकर राज्य का मान बढ़ाया, होनहार बेटे के गलें में धारण रजत पदक ने मां की आंखें भी नम कर दी, कठिन परिश्रम और अपार संघंर्षों के बाद भी कैसे एक बेटा सफलता के शिखर तक पंहुचा, आइए जानते हैं धावक अनु कुमार के संघर्ष की कहानी।
अनु कुमार की सफलता की संघर्ष भरी कहानी
उत्तराखंड ने 2025 में 38वें नेशनल गेम्स में मेजबानी करके पहले ही पूरे राष्ट्र और विश्व में अपनी तटस्थता और दृढ़ विश्वासी होनें का डंका बजा दिया है। उत्तराखंड के चमकते सितारों ने भी 38वें नेशनल गेम्स में अपने राज्य का परचम एसा लहराया की पूरी दुनिया देखती रह गई, न सिर्फ उत्तराखंड ने 38वें राष्ट्रीय खेलों में अपनी विजय का डकां बजाया बल्कि 77 पदकों को झटक कर खिलाड़ियों ने यह भी सिद्ध कर दिया कि हम भी किसी से कम नहीं हैं। कहते हैं कि आग में सोना जितना तपता है, उतना ही उसमें निखार आता है इसी क्रम में आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे ही होनहार और संघंर्षी नौजवान की जिसने अपनी असीम परिश्रम के आगे चुनौतियों और सफलता को नतमस्तक होनें में मजबूर कर दिया, ये कहानी हैं उत्तराखंड के लाल अनु कुमार कि। उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के धनपुरा गांव निवासी अनु कुमार ने राष्ट्रीय खेलों में 800 मीटर दौड़ और 4 गुना 400 मीटर रिले में रजत पदक जीतकर उत्तराखंड का नाम रोशन किया, कठिन संघर्ष के बाद होनहार बेटे ने सफलता पाई तो मां के आंसू नहीं थमे। हरिद्वार जिले के धनपुरा गांव निवासी अनु कुमार एक मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुख रखते हैं, 2022 में पिता की मृत्यु के बाद जैसे मानों अनु के कंधो पर तो पहाड़ आ पड़ा हो,लेकिन होशियार और कुशल नौजवान ने खेल के प्रति अपनी गंभीरता, लगन और जज्बे की आग को कायम रखा और उसके पीछे तब तक दौड़ता रहा जब तक सफलता ने अनु के सामने अपने घुटने नहीं टेक दिए।
पिता की मौत के बाद पूरी जिम्मेदारी
बचपन से ही खेल में रुचि रखने वाले अनु कुमार ने पिता की मृत्यु के बाद बहुत गरीबी का सामना किया, अनु के सामने खेल और परिवार की जिम्मेदारियां एक चुनौती सा मुंह लेकर खड़ी हो गईं लेकिन अनु ने हार न मानते हुए सभी चुनौतियों को पार करा। अनु ने बताया कि पिता की मृत्यु के बाद मेरे लिए खेलना बहुत मुश्किल हो गया था, समय बहुत कठिन था क्योंकि परिवार गरीबी से जूझ रहा था। उन्होंने कहा मेरे लिए हर दिन एक नई चुनौती था, लेकिन मैं जानता था कि अगर मैं मेहनत करूंगा तो एक दिन सफलता मिलेगी।
होनहार बेटे की सफलता देख छलके मां के आंसू
बेटे के गले में रजत पदक देख मां के खुशी के आंसू छलक गए। कठिन संघर्ष के बाद होनहार बेटे ने सफलता पाई तो मां के आंसू नहीं थमे। अनु की मां मुन्नी देवी ने बेटे की सफलता पर गर्व करते हुए कहा कि मेरे बेटे ने बहुत मेहनत की है और भगवान ऐसा बेटा हर किसी को दे। मां ने बताया कि अनु ने घर चलाने के लिए खेतों में काम किया और दिहाड़ी मजदूरी की और सुबह-शाम दौड़ लगाई। उन्होंने बताया कि अनु ने पिता की मृत्यु के बाद बहुत गरीबी देखी लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। बहन मोनिका और जीजा अर्जुन कहते हैं कि अनु का जज्बा तारीफ के काबिल है। वह हमेशा खेल को लेकर गंभीर रहा और अपनी तरफ से हमने भी उसे हर संभव मदद की और अनु ने भी कठिन समय में हमेशा हमें प्रेरित किया।Writer-शुभम तिवारी,HNN24X7