देहरादून : हाल के वर्षों में देहरादून की जनसंख्या में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई है। इसके साथ ही प्राइवेट वाहनों की संख्या भी अप्रत्याशित तरीके से बढ़ी है लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था बेहद लचर होने के कारण देहरादून के लोगों को निरंतर परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
इस समस्या से निपटने के लिए देहरादून में मेट्रो नियो जैसे वैकल्पिक ट्रांसपोर्ट की सख्त जरूरत है। यह बात देहरादून स्थित एसडीसी फाउंडेशन की ओर से पब्लिक ट्रांसपोर्ट इन देहरादून विषय पर आयोजित राउंड टेबल डायलॉग में सामने आई। एसडीसी फाउंडेशन ने इस डायलॉग में आई समस्याओं और सुझावों पर एक रिपोर्ट जारी की है।
रिपोर्ट को जारी करते हुए एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने बताया कि इस डायलॉग का आयोजन बीते 7 अगस्त को किया गया था। डायलॉग में आरटीओ (प्रवर्तन) शैलेश तिवारी, उत्तराखंड मेट्रो के डीजीएम (सिविल) अरुण कुमार भट्ट , उत्तराखंड मेट्रो के पीआरओ गोपाल शर्मा, पर्यावरणविद डॉ. सौम्या प्रसाद, संपादक असलीभारत.कॉम अजीत सिंह, दून रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष और नगर निगम पार्षद देवेंद्र पाल सिंह मोंटी और वरिष्ठ पत्रकार संजीव कंडवाल ने हिस्सा लिया था।
अनूप नौटियाल के अनुसार इस डायलॉग में यह बात मुख्य रूप से सामने आई कि हाल के वर्षों में देहरादून की अनुमानित जनसंख्या 12 लाख हो गई है। शहर में वाहनों की संख्या 10 लाख के करीब है। सड़कों पर दबाव है, लेकिन पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बिना आम नागरिक परेशान हैं। इस दौरान देहरादून में मेट्रो रेल, मेट्रो नियो, लाइट रेल ट्रांजिट, पॉड टैक्सी, रोपवे आदि पर कई घोषणाएं हुई, लेकिन अब तक इन पर कुछ भी अमल नहीं हो पाया है।
डायलॉग में यह बात मुख्य रूप से सामने आई कि देहरादून की अधिकांश सड़कों पर उनकी अधिकतम क्षमता से ज्यादा वाहन चल रहे हैं, ऐसे में वैकल्पिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था की जरूरत है और यह जरूरत मेट्रो नियो से पूरी हो सकती है।
मेट्रो नियो परियोजना का प्रस्ताव फिलहाल केन्द्र सरकार के विचाराधीन है। वक्ताओं की आम राय थी कि यदि यह प्रोजेक्ट धरातल पर उतरता है तो इससे एक तरफ जहां सड़कों पर दबाव कम होगा, वहीं दूसरी तरफ आम लोगों को भी सुविधा मिलेगी।
डायलॉग में संबंधित विभागों के अधिकारियों ने बताया कि शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का एक बड़ा नेटवर्क है, जिसमें 170 सिटी बसें, स्मार्ट सिटी की 30 इलेक्टिक बसें, 500 टाटा मैजिक, 800 विक्रम, 2500 ऑटो, 4500 ई रिक्शा शामिल हैं। यह भी बात सामने आई कि शहर की जनसंख्या को देखते हुए 30 सीट वाली कम से कम 350 बसों की जरूरत है।
यह भी ध्यान में रखना होगा कि मेट्रो नियो समाधान, यदि लागू भी किया जाता है, तो पूरे शहर क्षेत्र को कवर नहीं करेगा; इस प्रकार सम्पूर्ण देहरादून शहर में सार्वजनिक परिवहन के विभिन्न साधनों को विकसित करने की आवश्यकता है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट डायलॉग में यह बात भी सामने आई कि देहरादून में सरकारी परियोजनाएं बेहद धीमी गति से चल रही हैं, सड़कों पर अतिक्रमण हो रहा है, तथाकथित स्मार्ट सड़कें पिछले 4 सालों से बन नहीं पाई हैं। सरकार का ध्यान केवल रोडवेज पर रहा है और पिछले 20 वर्षों में कुछ बसों के अलावा देहरादून में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के मामले में कुछ खास नहीं हो पाया है।
आम लोगों के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध न होने, ऑटो और ई-रिक्शा चालकों द्वारा मनमाना किराया वसूले जाने और साइकिल सवारों और पैदल चलने वालों के लिए व्यवस्था को मजबूत करने की बात भी डायलॉग और रिपोर्ट में रखी गई।
वक्ताओं ने यह भी कहा कि मेट्रो नियो प्रोजेक्ट जल्द शुरू किये जाने की जरूरत है, लेकिन इस प्रोजेक्ट की हालत देहरादून स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की तरह नहीं होनी चाहिए। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनप्रतिनिधियों की भागीदारी की भी जरूरत बताई गई।
अनूप नौटियाल ने कहा कि इस डायलॉग के मुख्य रूप से 10 सुझाव और समस्याएं चिन्हित किये गए हैं । उन्होंने कहा कि इन सभी बिन्दुओं पर रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार, मुख्यमंत्री, सांसदों और अन्य संबंधित अधिकारियों और प्रतिनिधियों के साथ साझा की जाएगी। उनसे अपील और अपेक्षा की जाएगी कि वे अपने अपने स्तर पर देहरादून की पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्यवस्था को सुधारने और शहर में मेट्रो नियो की स्थापना करने के लिए लगातार प्रयास करेंगे।