Disclosure: Mining continues in Dehradun even after ban
देहरादून: उत्तराखंड में अवैध खनन को लेकर हमेशा से ही सवाल खड़े होते रहे हैं. हाल ही में सरकार की ओर से जारी कैग की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि जिन क्षेत्रों में खनन पर रोक लगी है, उन क्षेत्रों में भी धड़ल्ले से खनन किया जा रहा है. यही नहीं, कैग की रिपोर्ट में सैटेलाइट इमेज भी जारी करते हुए इस बात की पुष्टि की गई है. साथ ही यह भी बताया गया है कि अनुमति से काफी अधिक क्षेत्रों में खनन किया जा रहा है. साथ ही खनन माल के ट्रांसपोर्टेशन के लिए सरकारी गाड़ियों के नंबरों का भी इस्तेमाल किया गया. जिला देहरादून में अवैध खनन गतिविधियों का आकलन करने के लिए 2017-18 से 2020-21 तक के खनन सालों का लेखा परीक्षण किया गया. लेखा परीक्षा में पता चला कि जिला देहरादून में 24 खनन स्थलों में से तीन नदी स्तर बालू खनन स्थलों सॉनग-3 (सौंग नदी), ढकरानी में 21/3 और कुल्हाल (यमुना नदी) में 23/3 का चयन किया. कैग की रिपोर्ट के अनुसार लेखापरीक्षा द्वारा अवैध खनन की स्थिति का आकलन करने के लिए रिमोट सेंसिंग और जिओग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) टूल्स का इस्तेमाल किया गया. साथ ही रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी के परिणामों की पुष्टि के लिए संयुक्त भौतिक सत्यापन, विभाग के ट्रांसिट पास के डेटाबेस का विश्लेषण और सरकारी एजेंसियों द्वारा खनन सामग्री की खपत के माध्यम से की गयी.
देहरादून के तीन क्षेत्रों में हुए अवैध खनन के खेल में सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ. कैग की रिपोर्ट के अनुसार देहरादून जिले के तीन खनन क्षेत्रों ढकरानी खनन क्षेत्र, सौंग-3 साइट और कुल्हान साइट में खनन माफियाओं ने 37.17 लाख मीट्रिक टन अवैध खनन को ठिकाने लगा दिया. पुलिस और प्रशासन के अधिकारी अवैध खनन पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहे. इस अवैध खनन से राजस्व को करीब 39.98 करोड़ और जीएसटी के रूप में 5.71 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.
ढकरानी खनन क्षेत्र: यमुना नदी पर स्थित ढकरानी खनन साइट को जनवरी 2017 से खनन के लिए पट्टे पर नहीं दिया गया. लिहाजा, जनवरी 2017 से कोई खनन गतिविधि नहीं होनी चाहिए थी. बावजूद इसके लेखापरीक्षा द्वारा तकनीकी सलाहकार की मदद से साल 2020 में किए गए अलग-अलग समय में सैटेलाइट इमेज के आकलन के अनुसार फरवरी 2020 तक खनन नहीं किया गया. लेकिन, मई 2020 और उसके बाद इस प्रतिबंधित क्षेत्र में अवैध खनन की गतिविधियां दिखाई दी. जबकि, उस दौरान वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के चलते प्रदेश भर में संपूर्ण लॉकडाउन था.
सौंग-3 साइट: सौंग-3 साइट वन क्षेत्र में स्थित है. इस साइट के लिए वन/पर्यावरण स्वीकृति मई 2019 तक के लिए दी गई थी. उसके बाद की पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने के लिए परियोजना प्रस्तावक ने आवेदन और स्पष्टीकरण प्रस्तुत किए थे. उत्तराखंड वन विकास निगम से भी पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा था. तकनीकी सलाहकार ने सैटेलाइट रिमोट सेन्सिंग इमेज के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि साल 2018 से 2020 तक के सालों में खनन गतिविधियों में वृद्धि हुई. अक्टूबर 2019 तक पूरी नदी के किनारे को कवर कर लिया गया. रिमोट सेन्सिंग इमेज के विश्लेषण से मिले निष्कर्षों की स्थलीय निरीक्षण से भी इसकी पुष्टि की गई.
कुल्हान साइट: कुल्हाल साइट खनन पट्टा और पर्यावरणीय स्वीकृति के अनुसार खनन केवल पट्टे पर दिए गए क्षेत्र के भीतर ही किया जा सकता है. जिसका सीमांकन जिला कलेक्टर और खनन विभाग की ओर से संयुक्त रूप से पर्यावरणीय स्वीकृति और खनन पट्टे में जियो-कॉऑर्डिनेट का उपयोग करके किया जाता है. तकनीकी सलाहकार ने आधिकारिक तौर पर पट्टे पर दिए गए क्षेत्र के बाहर खनन गतिविधियों को रिपोर्ट किया. जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में अवैध रूप से खनन संचालित किया जा रहा है.
कैग की रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि देहरादून जिले में तीन खनन साइटों से एंबुलेंस और शव वाहनों से भी खनन सामग्री ढोई गई है. इसके साथ ही हजारों रवन्नाओं में भी सरकारी गाड़ियों के नंबरों का भी इस्तेमाल किया गया है. हालांकि, खनन का यह अवैध खेल 2017-18 से लेकर 2020-21 के बीच खेला गया. कैग की रिपोर्ट के अनुसार खनन सामग्री को ढोने के लिए जिन वाहनों का इस्तेमाल किया गया उसमे एंबुलेंस के हजारों नंबर, शव वाहनों और प्राइवेट वाहनों के नंबर भी पाए गए. कैग के आंकड़ों के अनुसार 6303 सरकारी वाहनों, 60,882 बिना पंजीकरण वाले वाहनों और 42,857 अन्य वाहनों का इस्तेमाल खनन सामग्री ढोने में किया गया.
कैग की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि 2,969 सरकारी वाहनों से करीब एक लाख 24 हजार 474 मीट्रिक टन, 835 यात्री वाहनों से करीब 97 हजार मीट्रिक टन के साथ ही 2500 टैक्सी वाहनों करीब 1.52 मीट्रिक टन अवैध खनन सामग्री को ढोया गया. हालांकि, इनमें 57 हजार से अधिक वाहन ऐसे थे, जो पंजीकृत भी नहीं थे. ऐसे वाहनों की संख्या कैग रिपोर्ट में 40 बताई गई है. साथ ही 782 पेट्रोलियम टैंकरों के नंबर भी अवैध खनन के रवन्नों में पाए गए. इतना ही नहीं, 261 ई-रिक्शा और 201 दोपहिया वाहनों के साथ ही 8000 ट्रैक्टरों से भी खनन सामग्री को ढोना दर्शाया गया.