उत्तराखंड में स्थायी राजधानी का सवाल सिर्फ राजनीति करने तक सीमित रह गया है। पूर्व की सरकारों ने राज्य गठन के बाद ही इस पर फैसला ले लिया होता तो आज इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं होता। यह बातें पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने लेखक रशीद किदवई की पुस्तक ‘लीडर्स, पालिटिशियन एंड सिटिजन’ के विमोचन के अवसर पर आयोजित संवाद में कहीं।
रविवार शाम राजपुर रोड स्थित एक होटल में पुस्तक का विमोचन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, वरिष्ठ पत्रकार एवं पीटीआइ (भाषा) के संपादक निर्मल पाठक, लेखक अद्वैता काला और लेखक रशीद किदवई ने किया। इसके बाद ‘क्या उत्तराखंड उज्ज्वल भविष्य की ओर विषय पर संवाद का आयोजन किया गया। संवाद में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भी शामिल होना था, लेकिन स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के चलते वह शामिल नहीं हुए।
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इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार निर्मल पाठक ने हरीश रावत से सवाल किया कि पिछले 22 वर्ष में पूर्व की सरकारों ने कई काम किए, लेकिन ऐसे कौन से काम रह गए जो पूर्व में ही हो जाने चाहिए थे। इसके जवाब में हरीश रावत ने कहा कि ऐसे दो काम है, जिन्हें पूर्व में ही किया जाना था। पहला स्थायी राजधानी का निर्धारण। अगर ऐसा होता तो अब तक इस पर राजनीति नहीं हो रही होती। दूसरा काम यह कि हमें प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आधार तय करना चाहिए था। चाहे हम ग्रामीण विकास को आधार बनाते या शहरी विकास को। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने यह भी कहा कि पूर्व की सरकारों ने शिक्षा को बढ़ावा देने का तो काम किया, लेकिन टिकाऊ अर्थव्यवस्था पर फोकस नहीं किया।