उत्तराखंड

उत्तराखंड हाईकोर्ट में सहायक अध्यापकों की बीएड डिग्री विवाद पर हुई सुनवाई

UTTARAKHAND NEWS :  उत्तराखंड उच्च न्यायालय में शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त 14 अभ्यर्थियों की राज्य सरकार द्वारा उनकी बीएड डिग्री को अमान्य ठहराने और रुद्रप्रयाग जनपद में उनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किए जाने की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर आज सुनवाई हुई।

UTTARAKHAND NEWS :  उत्तराखंड उच्च न्यायालय में शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्त 14 अभ्यर्थियों की राज्य सरकार द्वारा उनकी बीएड डिग्री को अमान्य ठहराने और रुद्रप्रयाग जनपद में उनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किए जाने की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका पर आज सुनवाई हुई।

मामला क्या है

  • ये 14 सहायक अध्यापक राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किए गए थे।

  • सरकार ने बाद में उनकी बीएड डिग्री को अमान्य करार देते हुए कहा कि वे शैक्षिक योग्यता की आवश्यकताएँ पूरी नहीं करते।

  • रुद्रप्रयाग जिले में इनके खिलाफ आरोप पत्र जारी किए गए हैं, जिनमें यह दावा किया गया है कि उन्होंने नियुक्ति के लिए गलत दस्तावेज प्रस्तुत किए।

  • इन अध्यापकों ने इस कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी है, तर्क देते हुए कि उनका नियुक्ति अवैध नहीं है और उन्हें सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।

सुनवाई के दौरान मुख्य बिंदु

  • याचिकाकर्ताओं की ओर से यह कहा गया कि उनकी नियुक्ति के समय प्रस्तुत सभी शैक्षिक प्रमाण पत्र वास्तविक हैं और सरकार ने उन्हें उचित अवसर दिए बिना कार्रवाई की है।

  • सरकार की ओर से तर्क दिया गया कि यदि शैक्षिक योग्यता में खामियाँ पाई गई हों तो कार्रवाई करना स्वाभाविक है।

  • न्यायालय ने इस विषय को गंभीरता से लेते हुए मामले की गहन समीक्षा करने का आदेश दिया।

इस मामले को देखा जाए तो उत्तराखंड हाईकोर्ट पहले ही मामले में यह कहा चुका है कि यदि नियुक्ति के समय प्रस्तुत किए गए प्रमाण पत्र योग्य नहीं पाए जाएँ, तो नियुक्ति प्रारंभ से ही अमान्य मानी जाएगी। अन्य मामलों में भी कोर्ट ने बीएड डिग्री धारकों की नियुक्ति को चुनौती देने वाले अभ्यर्थियों की याचिकाएँ खारिज की हैं।

न्यायालय इस याचिका पर अगले हफ्तों में आदेश दे सकती है या सरकारी पक्ष को अपना संतोषजनक जवाब प्रस्तुत करने का अवसर दे सकती है।

सेवानिवृत्त सहायक अध्यापक दिनेश चंद चमोली व अन्य ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि उन्होंने वर्ष 1989 में और कुछ लोगो ने 1994-95 में बीएड की डिग्री ली थी, जिसके बाद उनकी प्रमाण पत्रों की जांच के उपरांत उन्हें नियुक्ति दी गई थी। याचिकाकर्ता का कहना है अब रिटायरमेंट के आसपास राज्य सरकार द्वारा उनके खिलाफ आरोप पत्र तय कर मुकदमे दर्ज किए गए है कि उनकी डिग्री फर्जी है। जिस संस्थान से उन्होंने बीएड किया है वह शिक्षण संस्थान विश्व विद्यालय अनुदान आयोग से मान्यता प्राप्त विद्यालय की सूची में शामिल नही है।      

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