Jaipur Bahi Khata: दिवाली का त्योहार न सिर्फ खुशियाँ लेकर आता है, बल्कि परंपराओं और रीति-रिवाज़ों को भी जीवित रखता है। आज हम आपको एक ऐसी ही परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं, जो कंप्यूटर के इस डिजिटल युग में भी अपनी अहमियत बनाए हुए है और वह है लाल रंग का बही-खाता।
पहले हर व्यापारी की खास जरूरत हुआ यह बही-खाता, अब केवल दिवाली और लक्ष्मी पूजन के दिन ही इस्तेमाल होता। फिर भी, आज भी कई व्यापारी और दुकानदार अपने नकद और उधार के लेन-देन के लिए इसी बही-खाते पर भरोसा करते हैं।
बही-खाता हिंदी के शब्दों को मिलाकर बना है। इसमें बही शब्द का मतलब होता है हिसाब-किताब लिखने की पुस्तिका या रजिस्टर और खाता शब्द का मतलब है हिसाब यानी लेन-देन का लेखा। पूरी तरह से हाथ से बने बही- खाता ने अपना पारंपरिक रूप बरकरार रखा है। इसको बनाने वाले लोग पारंपरिक सामग्रियों से लेकर इसे बांधने में इस्तेमाल होने वाले धागों तक, हर चीज का खास ध्यान रखते हैं।

जयपुर के अक्षय कुमार गुप्ता, जिनकी दुकान पिछले 70 वर्षों से बही-खाता बना रहे है, उनका कहना है कि उन्होंने 70 साल पहले अपने दादा के शुरू किए गए व्यवसाय को आगे बढ़ाया। अक्षय बताते हैं कि अब कंप्यूटर के चलन और कलम और कागज के कम होते इस्तेमाल की वजह से बही-खातों की बिक्री हर साल पांच से छह फीसदी कम हो रही है। उन्होंने बताया कि बड़ी संख्या में ग्राहक बही-खाता इसलिए खरीदते हैं क्योंकि वे चली आ रही परंपरा को तोड़ना नहीं चाहते। इसे शुभ और व्यापार को बढ़ाने के लिए लाभदायक माना जाता है।
बही खाता पारंपरिक रूप से दिवाली से पहले खरीदा जाता है। ये हिंदू चंद्र कैलेंडर में नए साल की शुरुआत का भी प्रतीक है। इस दिन, पुरानी खाता बही बंद कर आगामी वित्तीय वर्ष के लिए नई खाता-बही खोली जाती है। साथ ही धन के लिए देवी लक्ष्मी और बुद्धि और शुभ शुरुआत के लिए भगवान गणेश का आह्वान किया जाता है।
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