भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी रहे सुनील ओझा का आज गुड़गांव के अस्पताल में इलाज के दौरान निधन
नहीं रहे मिस्टर भरोसेमंद! PM मोदी के बेहद करीबी रहे सुनील ओझा का इलाज के दौरान निधन
दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी रहे सुनील ओझा का आज गुड़गांव के अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह प्रधानमंत्री के लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले थे। हाल ही में सुनील ओझा को उत्तर प्रदेश से बिहार में भेज कर चुनावी रणनीति तैयार करने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
बिहार जाने से पहले सुनील ओझा उत्तर प्रदेश के सह प्रभारी थे और उन्हें गढ़ौली धाम आश्रम में विवाद उठने के बाद बिहार में सह प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। सुनील ओझा का मिर्जापुर के गढ़ौली धाम आश्रम को लेकर उठा विवाद काफी दिनों तक चर्चा का विषय रहा था।
दरअसल, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता के तौर पर सुनील ओझा के ऊपर बड़ी जिम्मेदारी देखी जाती थी। वह यूपी के सह प्रभारी होते हुए हमेशा चर्चा में रहे। बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उन्हें 29 मार्च 2023 को बिहार के सह प्रभारी के तौर पर भेजा गया था। जिसके कारण राजनीतिक गलियारों में काफी हलचल मची थी।
सुनील ओझा सबसे ज्यादा मिर्जापुर जनपद के गढ़ौली धाम आश्रम को लेकर चर्चा में बने रहे। मिर्जापुर में नदी के किनारे गढ़ौली धाम आश्रम का निर्माण किया गया है। जिसकी देखरेख सुनील ओझा कर रहे थे। उस वक्त कई बड़े नेताओं समय कई अन्य बड़ी हस्तियों का आगमन भी शुरू हो गया था। इसी दौरान उन पर कई विवाद भी उठे। इन्हीं विवादों से सुनील ओझा को बचाने के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश से बिहार भेजा गया था।
सुनील ओझा मूल रूप से गुजरात के रहने वाले थे और गुजराती होने के कारण उन्हें पीएम मोदी के सबसे करीबी नेताओं में से एक भी माना जाता था। पीएम के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी सुनील ओझा ने हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत गुजरात के भावनगर से की थी। वह दो बार भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर गुजरात के भावनगर से विधायक रहे। 2007 में बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। जिसके चलते उन्होंने नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इस दौरान उनके और नरेंद्र मोदी के बीच दूरियां भी बढ़ती गई।
राजनीतिक सूत्रों की मानें तो गुजरात के सीएम के तौर पर नरेंद्र मोदी ने अवैध निर्माण के खिलाफ जो बड़ा अभियान चलाया, इसे लेकर सुनील ओझा उसे समय तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से नाराज भी थे। भारतीय जनता पार्टी छोड़ने के बाद सुनील ओझा ने महागुजरात जनता पार्टी नाम से एक अलग पार्टी भी बनाई।
हालांकि 2011 में फिर से नरेंद्र मोदी के करीब आए और गुजरात भाजपा में उन्हें प्रवक्ता का पद दिया गया। वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी की तो सुनील ओझा, अरुण सिंह और सुनील देवधर को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी देकर वाराणसी भेजा गया।
चुनाव के बाद सुनील देवधर और अरुण सिंह ने तो दूसरी जिम्मेदारियां संभाल ली, लेकिन सुनील ओझा को वाराणसी में ही रखा गया। सुनील ओझा को सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई। सुनील ओझा को काशी क्षेत्र की जिम्मेदारी संभालते हुए 2019 में उन्हें गोरक्ष प्रांत की भी जिम्मेदारी दे दी गई।
भारतीय जनता पार्टी के छह क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होने वाले काशी क्षेत्र जिसमें एक 14 लोकसभा और 12 प्रशासनिक जिले आते हैं, उस पर सुनील ओझा ने अपना दबदबा कायम करते हुए भाजपा को मजबूत स्थिति में खड़ा करने का भी काम किया था। हालांकि गढ़ौली धाम को लेकर सुनील ओझा सबसे ज्यादा चर्चा में रहे।
बनारस के नजदीक और मिर्जापुर जनपद में आश्रम की शुरुआत बालमुकुंद फाउंडेशन की तरफ से हुई थी। जिसकी अगवाई सुनील ओझा ने ही की थी। फाउंडेशन पहली बार कोरोना की दूसरी लहर के वक्त चर्चा में आया। जब उसके कार्यकर्ताओं ने लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना शुरू किया।
लगभग 20 बीघा जमीन पर गंगा किनारे खरीद कर उस पर आश्रम का निर्माण शुरू हुआ और गौरीशंकर की 108 फीट ऊंची प्रतिमा लगाने की तैयारी की जाने लगी। 12 फरवरी 2023 को आश्रम के स्थापना दिवस के मौके पर 5 दिन के कार्यक्रम के आयोजन के दौरान तरह-तरह के धार्मिक अनुष्ठान भी यहां पर हुए।
हालांकि इसी आश्रम पर उठे विवाद को लेकर चर्चा में आए सुनील ओझा को यूपी से हटाकर बिहार के सह प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई। जो काफी चर्चा का विषय बना। हाल ही में धाम को लेकर फिर से कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। जिसमें 3 दिन पहले ही सुनील ओझा ने बड़ा दीप उत्सव और तुलसी विवाह कार्यक्रम का आयोजन भी किया था।